Author: एझाझ अहमद
प्यास बुझाने अब वो समंदर नही आते । आते है वो दरवाजे तक अंदर नही आते । जख्म पे नमक भी सुकून देता था तब , अब मरहम लगाने …
हर रोज किसी ना किसी की मौत की खबर आती हैं । मुझको भी अब मेरी मंजिल साफ नजर आती हैं । गुजरता है जब मेरी गली से भी …
चेहरा नजर नही आता किसी को भी परछाई का । अंदाजा कोन लगा सकता हैं दील की घेहराई का । कोई पास भी आये तो रूठ जाती हैं , …
एक सवाल हैं मेरा तुझसे , के तु ईतना मज़बूर क्यू हैं ? एक पल तो गुजरता नही तनहा , फिर तनहा जीने का फितूर क्यू हैं ? सज …
सबको पेहले से ही ये लगता था के कोई तेरा ना होगा । यकीन मुझे भी था के तेरे सिवाय कोई मेरा ना होगा । सफर मे कई हसीन …
छोटी छोटी आँखो से दुनियाँ देखने लगा । छोटे हाथों से उँगलियाँ पकड़ ने लगा । मेरे कदम और भी मज़बूत हो गये , माँ का हाथ पकड़ के …
अपने आँसूओं को एसे ही बहाया मत कर । जिन्हें धूप पसंद हो, उनपर साया मत कर । उसे तो आदत हैं बार बार धोका देने की , तु …
जिस के पास भी मांगु गीता और कुरान मिल जाये । मिल जुल कर रेहना हैं सबका ये ख्याल मिल जाये । ना कोई ईसाई ,ना कोई हिन्दू ,ना …
मेरी सांसों से चले एसी साँस न रखे कोई । मैं खुद प्यासा हूँ , मेरी प्यास न रखे कोई । दाँव पे रख दी हैं जिंदगी भर की …
पत्थर दील पे मेरे अब कोई असर न होगी । मर भी गये तो अब तुमको खबर न होगी । खो जायेंगे उस अँधेरी तनहा रातों मे , के …
तनहा थे तो भले थे हम, हम ईश्क के कर्जदार न थे । अब काफी है मुझको एक ईशारा, हम पेहले समझदार न थे । एक ईशारे पे तेरे …
माना के खता करते रेहते है हम पर आकर हमसे कोइ गिला तो करो वफा ना सही तो बेवफ़ाई ही सही आपस मैं शुरू कोई सिलसिला तो करो ये …
जलते हुए दील को बुझाये भी तो कैसे ? मलबे से फीर घर बनाये भी तो कैसे ? अाँखो से आँसु बेवकत बेहते रेहते है होटो पे मुसकुराहट सजाये …