Author: Ashwani Mishra
तुम्हें देखकर तुम्हारी आँखों से होकर वक़्त को भी ठहरा देती हो, आखिर हो कौन तुम. बेशक तुम कोई किताबी परी तो नहीं तुमसे मिलता हूँ जब भी मगर …
सवेरा – अँधेरी रात थी, घाना कोहरा था लौ जल रही थी, कि अचानक आया तूफ़ान, फिर हुआ सवेरा बहार आकर देखा, सूरज जल रहा था.. कहा-सुनी – उसने …
रंज बदल गया नशा बदल गया तबियत बदल गई और घर बदल गया…!! तेरी निशानी गई तेरा मकां गया घर में आग लगी और मंज़र बदल गया..!! ये क्या …
नफरत ही नफरत है मोहब्बत का निशां नहीं इतनी नफरत देखकर खुदा भी हैरान है। ज़ुल्म इतनी सादगी से है जबरदस्ती का निशां नहीं इतना विष देखकर सर्प भी …
मरकर देखना चाहता हूँ मैं, लेकिन ये तजुर्बा तुम्हें कैसे बताऊँ….!! स्वर्ग मिली है मुझको, या फिर नरक के दरवाज़े पर खड़ा हूँ…! सजा तो ज़मीं पर काट ली …
ना था कुछ तो खुदा था, कुछ ना होता तो खुदा होता….!! डुबाया मुझको उन्होनें, गर मैं ना होता तो क्या होता.–} अच्छा होता कि मैं मर गया होता…!! …
मैं हूँ या नहीं हूँ..!! मैं हूँ तो क्या हूँ..? नहीं हूँ तो कहाँ हूँ..? ये कैसा सवाल है, जिसका जवाब भी एक सवाल है..!! किस पर यकीं करूँ …
अब आओ तो नया सवेरा लेते आना… इस गम से जी भर चुका है, थोड़ी खुशियां लेते आना..!! अब आओ तो नया समय लेते आना… ये रात भारी हो …