Author: अरुण कुमार तिवारी
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मीत(विधाता छंद)1222 1222 1222 1222सभी रिश्ते सभी नाते नहीं इसके बराबर हैं।दिलों के बीच बहता ये मचलता प्रेम सागर है।जहाँ में खुशनसीबी है कि जिसका मीत होता है।नवल यौवन …
*’तेरी कहानी ढूँढ़ता हूँ…**(ग़ज़ल)*अरकान 2122 2122 2122 2122वक्त के अखबार में तेरी कहानी ढूँढ़ता हूँ।उम्र के इस आइने में इक निशानी ढूँढ़ता हूँ।दौर मिट जाएँ भले मिटते नहीं जज्बात …
*मेरा कसूर नहीं..*इससे ज्यादा मेरा कसूर नहीं||मुझ पर चलता तेरा गुरूर नहीं।।तेरी फितरत ने तुझ को दूर किया,मेंरी नजरों में दिल से दूर नहीं।तेरी हर हाँ में हाँ करूँ …
*दर्द का दरिया निगलना है तुझे*बह्र 2122 2122 2122 212सुन समन्दर, दर्द का दरिया निगलना है तुझे।खुद ब खुद तूफ़ान से लड़कर निकलना है तुझे।झेलना है हर सितम जालिम …
*बस यही है आरजू*बह्र 2122 2122 2122 212बस यही है आरजू नज़रें झुका कर देख लो,बेवजह दो चार पल ही मुस्करा कर देख लो।देखना हो देख लो क्या चाहती …
*बिछुरन की ये रैना पिया..*(विरह गीत)बिछुरन की ये रैना पिया,कासों हो अब चैना पिया।तुम हौ रूठे निंदिया लूटे,अँसुअन की रसधार न टूटे।साथ न दे अब नैना पिया,बिछुरन की ये …
*भारती की आरती उतारिये..*एक कण्ठ से सभी पुकारिये,भारती की आरती उतारिये|भातृ भाव मर्म ही विशेष हो,एकता ही धर्म हो न द्वेष हो|ऊँच-नीच क्लेश को बिसारिये,भारती की आरती उतारिये।एक कण्ठ …
*मन पयोधि..*(अतुकांत)उछल-उछल कर,उथल-पुथल करछूती रहतींतटबन्धों को,अगनित-अगनित भावलिये उल्लास,प्रीति रस।मन पयोधि कीचंचल लहरें।कभी मातृ सा,स्नेह लुटातीसहलाती हैं,हौले-हौले।बात अनगिनत,कर जाती हैं बिन कुछ बोले।हर दुःख हर लेनेको आतुर,मन पयोधि की शीतल …
*आज भी इंतज़ार सा क्यों है…*आज भी इंतज़ार सा क्यों है।दिल मेरा बेकरार सा क्यों है।इश्क का दौर मिट गया फिर भी,भूत सर पे सवार सा क्यों है।लाख जहमत …
*शाम का मंजर है ये गुलजार होना चाहिए…*इस जहाँ में नेह का विस्तार होना चाहिए।आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए।हो सुकूँ इतना बसर हो उम्र अमनो चैन से,स्वर्ग …
*मुझे मत बाँधो..*(अतुकांत)मैं,चलतीबहती,तैरती हूँ,उन्मुक्त गगन में।गहरे,छिछले,भावों के सागर में|लहरों के ऊपर,या उसकी तलहटी में।उषा की किरणों में,छिपकर,हौले से,निहारती हूँवत्सल वसुधा को।कभी-कभी,हृदय के,स्निग्ध कुहासे से,खिल उठती हूँ,ओस की बूँद बन।मचल …
*जयति जय जय माँ भारती..*जयति जय-जय माँ भारती,जन गण करें आरती।देव-धरा ये,वेद बखानी,मानस-गीता,गुरु की बानी|राम-लखन जहाँ वन-वन बिहरें,केशव बनें सारथी।जयति जय जय माँ भारती,जन गण करें आरती।सप्त नदी मिल …
*प्रभात वर्णन*(भाग 2)स्वर्ण रश्मियाँ बरसीं खुलकर,पर्वत शिखर अरुणमय होकर|श्वेत वर्ण सिंचित यह अम्बर,लगती है छवि अनुपम सुंदर।पावन प्रात सुहावन बेला,नव्य सृजन का लगता मेला।किरण छुवन धरती मुस्कायी,मुख मण्डल पर …
*तय करें हर राह मिल-जुल…*हो सफल हर चाह मिल-जुल,तय करें हर राह मिल-जुल।इस जहां में शेष हैं जो,मंजिलों के ख्वाब सुंदर|हों भले दुश्वारियां पर,कम न हो उत्साह तृणभर।लाख बाधाएं …
*यह प्रभात की बेला अनुपम*बीती निशा मिटा अँधियारा,चन्द्र-भानु को मिला किनारा|खग कुल जगे प्रात गुण गाते,नेह राग का गीत सुनाते।रवि रथ की है छँटा निराली,सुमनों के अधरों पर लाली|बहती …
*उस दिन..*(अतुकांत)उस दिनछायेगी धुन्धमेरे कृतित्व की,उठेगा धुंआमेरी यादों का,फैलेगी खुशबूया दुर्गन्धमेरे कुकर्मो-सुकर्मों की|उस दिन,मैं भी कसा जाऊँगा,कर्म की कसौटी पर,मूल्यों और मानकों पर,चर्चा के बाज़ार में,सुलग उठूँगा अचानक,परख होगी …
*ये नश्वर मिट्टी का पुतला….*अरकान 22 22 22 22 22 22 22 22सच्ची तस्वीर छिपी जिसमे,दर्पण वो दिखलाये कोई।है जानी पहचानी उलझन,ये उलझन सुलझाये कोई।है मृत्यु अगर अंतिम सच …
*रूठा सारा संसार पिये..*तुम रूठे हो, यूँ लगता है, रूठा सारा संसार पिये।तन मन दोनों हैं एक अगर,क्यों इतने तीखे वार पिये।क्या हार यहाँ,क्या जीत यहाँ, जीवन ये कोई …
*देख विधाता देख!..*(सरसी छंद)कभी-कभी उजले दर्पण में,मूरत दिखती एक।पहचानी सी भाव भंगिमा,सूरत लगती नेक।।चन्दन-चन्दन लगती काया,कर्मठता के हाथ।पावन स्निग्ध चरण हैं उसके,ममता उसके साथ।।उसका उजला-उजला आँचल,परियों जैसी शान।अमृत घोली …
*उम्र पल भर में बिताने का मजा कुछ और है..*(ग़ज़ल)अरकान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुनदिल्लगी में दिल दुखाने का मजा कुछ और है।रूठकर उनको सताने का मजा कुछ और है।जब …
*ग़ज़ल**बह्र- १२२२ १२२२ १२२*(काफिया *ई* और रदीफ़ *है और मैं हूँ*)जहाँ में कुछ कमी है और मैं हूँ,स्याही किश्मत हुई है और मैं हूँ।हृदय की वेदना आँखों से निकली,फिजां …
*नयन नीर की लकीर**(अतुकांत)*हैं कुछ सूखीआँसुओ की लकीरें,जो बनती हैंभावों के प्रबल दबाव सेहृदय सेपलकों सेहाँ इन्हीं अधखुली पलकों सेढुलक करगर्म गर्मयादों की तरहकिसी जज्बात मेंकिसी की याद मेंकुछ …
(कश्मीर पर……..) सम भाव विटप का कर पर्यूषण चला किधर! क्यों अन्तस् तेरा नहीं देखता भरत शिखर! क्यों नहीं हर्ज़, कि भूले फ़र्ज़, बढ़े काफ़िर मतवाले| उठे व्यवधान ,नहीं …
जब शाम गहराती है। जब शाम…… मैं थकी हारी घर आती हूँ, होती है जंग कोलाहल से| शान्ति के लिए, धूप से, जंगल से| छांव के लिए, ढूंढती हूँ …