Author: Saahil Parwez
वृक्ष के सम पाट खोलो अपनी मंज़िल को टटोलो। जैसे तपती धूप में भी वृक्ष करता छाँव, जितनी पत्र-भुजाएँ फैल पाती लक्ष्य-पथ को तुम न तोलो पहले मंज़िल को …
हम यूं दिवाना वार फिरते हैं कि सबा जैसे ख़्वार फिरते हैं। कोई शम्आ नज़र जो आ जाए फिर तो परवाना-वार फिरते हैं। हूँ गदा बस तेरी गली का …
काम न आई तदबीरें कुछ आखिर तुमको थाम लिया सुब्ह को भागे, दिन में रोए, शाम को तेरा नाम लिया। हम से तो कुछ बैर न था फिर ऐ …
यही सब पूछते हैं उम्र इतनी तुमने कहाँ पाई मैं कह देता हूँ उनसे, ईश्क़ में कब लोग मरते हैं। तुम्हारा नाम लेके मुद्दतों से जी रहा हूँ मैं॥ …
तेरी यादें मिर्च की तरह तीखी हैं जब भी आती आँखें नम कर जाती है। रोज़ में तुमको चीनी खाके सोचता हूँ॥ परवेज़ ‘ईश्क़ी’
ईश्क़ छिपता नहीं छुपाने से लोग कहते हैं ईश्क़ है वो मुश्क़। पर वो कहती है जानती ही नहीं॥ (C)परवेज़ ‘ईश्क़ी’
कूलर की मशनूई हवा ही पीकर अब तक ज़िंदा हूँ, वरना ग्लोबल-वार्मिंग से मैं कब का मर जाता। देखो साईंस ने कितनी तरक्की कर ली है॥ (C)परवेज़ ‘ईश्क़ी’
मुद्दत गुज़री तुम न मिले हो इतनी दूर भी क्यों रहते हो।। बैठ के साहिल पे फिर तुम क्यों यादों मेँ मेरी गुम रहते हो।। चाँद ने पूछा सूनी …
जहाँ में ईश्क़ का हासिल नहीं है , कोई भी ईश्क़ के क़ाबिल नहीं है॥ वफ़ाएँ मिट चुकी हैं इस जहाँ से , मुहब्बत की कोई मंज़िल नहीं है॥ …
गुज़ारिश है हाँ , तुमसे गुज़ारिश है , कि तुम यूं पास न आया करो कि तुम जब पास होती हो बहुत ही दूर लगती हो , मुझे मिलती …
अबकि हम-तुम मिले गर तो यूँ ताअरूफ़ हो जैसे पहले कभी हम मिले ही नहीं देख कर तुम मुझे आगे बढ़ जाओ और मैं भी बस इक निगाह करके …
यहाँ से दूर बहुत ही दूर खुले मैदानों में जहाँ कलियाँ मुस्कुराती है पंछी गीत गातें हैं हवा सरसराती है धूप गुनगुनाती है फिज़ा महकती जाती है जहाँ आज़ादी …
किसी ने मेरी तन्हाईंयों को चुराकर अपनी पलकों के ज़िद में रख ली है अब मुझे बज़्म है न फुर्क़त का गुमां जैसे खोटे सिक्के की तरह मेरी ज़िंदगी …
खिल-खिलाती धूप में, सरसराती छाँव में , लहलहाते , कुम्हलाते , हवा के झौंकों से , जीवन के कुछ पन्ने , मैं आज पलट रहा था , चँद कोरे …
सबसे पहले जो खुद को झुठलाएगा, सच्चा वो उनका आशिक़ कहलाएगा।। भीड़ से मेरे यार ने ये ऐलान किया, सबसे पहला पत्थर कौन उठाएगा।। अहले-शहर के हाथ कटे क्यों …
ये है, नहीँ, ये नहीँ है, वो है, नहीँ, वो भी नहीँ है, इनमेँ से कोई भी नहीँ है, ये तो इन्सान हैँ, वो तो कोई ओर था, इन्सानोँ …
पिया बावरे. . . आजा साँवरे. . . नींदिया न आवे. . . रतिया जगावे. . . दिल को कहीँ भी चैन न आवे, काहे तू बलमा इतना सतावे, …
एक टूटा हुआ सितारा हूँ। बाब-ए-गर्दिश का मारा-मारा हूँ।। न मिला आशियाँ कहीँ भी मुझे। जो बिखर जाए मैँ वो धारा हूँ।। चाहे ठुकरा दे या क़बूल तू कर। …