Author: Anup
तू मेरी तो नही शायद, उदासी के धुएं से कुछ बूँदें उधार लेकर तू बरसती क्यों नही। किसी स्वप्न की आहट लेकर, निद्रा की चादर ओढ़े, ओस से झिलमिला, तू …
तुम लौटो, देखो यादों की गिरहें कैसे खुली हैं, ये सांस रुके तो जिंदगी को सांस आये, तुम्हारे लम्हों की उम्र ज्यादा हो | तुम्हारी हंसी बिखर जाती थी …
कौन चुका पाया रिश्तों की कीमत को, अच्छे बुरे को कौन पहचान पाया, इंसान तो बस काठ की नौका में खुद को तैरता पाया। देखो तो तारे सीमान्त हैं …