Author: Ankit Pulkit "asraar"
होली का माहोल.. कुछ रंग मुझको लूटने दो. सब चले जाते ह छोड़ के “असरार” तुम रहो कि मेरी महफ़िल में, कि थोड़ी तो रंगत रहने दो!
मैं वो रंग हुँ जो तेरी मस्ती में खिलता हुँ मैं वो नूर हुँ जो करके दीद तेरे चमकता हुँ ! अरे मुझको इधर उधर कि बन्दिशों में मत …
डर तो लगता है तुझे भी मेरी बेरुखी से…. जो तु आज कल मुझपे इतना महरबान है!! कंही हो ना जाए ये आँखे गम… कंही हो ना जाये ये …
जब से होश सम्भाला है.. खुद को जहानत कि दुनिया में पाया है.. इस जंहा में कदम रखने को .. ना जाने कितने अपनों को मेने ठुकराया है बड़ी …
मैं आवाज दु तुझे, तो तु चले आना! अगर हो इम्तिहान मेरी वफ़ा का तो तु चले आना !! जिंदगी के रंज-ओ-गम अकेले बाँट लूंगा मैं! मगर बात हो …