Author: abhaykumaranand
कहाँ जाएँ ,किस् से कहें व्यथा अपने अंतर्मन की इधर देखें ,उधर देखें ,या चाहे जिधर देखें हर तन परेशान ,हर मन परेशान कुछ सूझता नहीं ,कुछ दीखता नहीं …
आज राजनीती में मानो एक नयी उमंग आई परंपरा को तोड़ आम आदमी असली रंग में आई भ्रस्टाचार से ट्रस्ट जनता ने लोकतंत्र लोकतंत्र की परिभाषा बखूबी समझायी मंहगाई …
इस वर्ष की अब हो रही बिदाई घर आँगन की बगिया महक उठे घर घर में प्रेम भाव का फूल खिले जीवन में खुशियां पल-पल हो नव वर्ष सभी …
रोते रोते पल पल मैने, इस जीवन को जिया है अमृत है यारो जग ये फिर भी, मैने विष को ही पीया है जग के सीने में आह नही …
आख़िर मेरी बरसों की चाहत रंग लाई देर आई पर दुरुस्त आई बचपन से एक ख्वाब था ये ख्वाब भी लाजवाब था चाहत मन में हो तो ज़रूर पूरी …
न कल सम था न आज सम है फिर काहे का समाज है मुझसे किसी ने कहने को नहीं कहा मैंने जो सहा वही कहा देख दलित के प्रति …
कर दिया बर्बाद जिसको ममता की मौत ने उस अभागे का न पोछा किसी ने भींगे नयन अमन का घोसला था माँ की गोद में शाख वो तोड़ दी …
एक तरफ महल तो दूसरी तरफ झोपड़ियां क्यों दिखती हैं ? एक ही शहर में चमचमाती चौड़ी सड़कें , तो कुछ ही दूरी पे संकीर्ण गलियां क्यों दिखती हैं …
हे माँ भारती तू ही मेरी जान, तिरंगा मेरी शान माँ तेरी रक्षा की खातिर ,तुझपे ये जान सौ सौ बार कुर्वान तेरी रक्षा ही मेरी पूजा, ग्रंथ मेरा …
मत पियो कोई शराब मेरे यार, ये आदत खराब है! कोई गर लाती है तबाही तो ये ही शराब है! कभी हुआ करता था मैं भी, आशिक शराब का …
अरे सुनता है आतंक के आका या सुनाउ मैं तुझे अपनी कलम की धार से तुम नही बच पाएगा मेरी कलम के वार से और हम डरने वाले नही …