Author: Anuj Bhargava
कहानी बीज की अभी मुझे मेरे हाल पर जमीं पे पड़ा रहने दो बच्चा हूँ अभी कच्चा हूँ प्यार से मेरी ओर देख कर मुझे जमीं की नमी में …
सवाल आज हर कोई सवाल पूछ रहा उनमें में भी एक हूँ मेन भी वही सवाल पूछ रहा ये सवाल पहले भी पूछे जा रहे थे आज भी पूछे …
संघर्ष अभाव ज्ञान का पनप रहा अलगाव सा अत्याचार अगन समान अन्याय सुलग रहा अंधकार फैल रहा ईमान गुमराह कर रहा ईमानदारी भटक रही दिलों में दूरियाँ बढ़ रही …
नव वर्ष की लालिमा से पल तो रुकता नहीं समय का अंश जो ठहरा हर पल हर छण नया एहसास देता उन पलों के संग संग …
बहशी दरिंदे समाज में मानव को क्या हो गया कितना बहशी वो हो गया डर उनसे कोसों दूर हो गया लगता है पशु से भी बत्तर हो गया मन …
ठिठुरन सफ़ेद धुएँ की चादर में लिपटी सुबह की लालिमा क्यूँ यूं छिपती ठण्ड में रंग कोहरे का गहरा हो जाता तमाम गरम कपड़े पहनने को दिल मचल जाता …
मेरी तो उम्र हो चुकी वर्षों से यहाँ खड़ा हूँ कई सावन झेल चुका शीत को निहार ता रहा मौसम के सारे उतार चड़ाव भी देखे तपती धूप सहकर …