शीर्षक-अब छोड़ भी दोहे मेरे प्रियतमहे मेरे पति परमेश्वरतुम हो मेरे प्यारहम है तेरे परिवारमत कर अब अत्याचारछोड़ दोे शराब होगी तबियत ख़राबतुमसे हैं बंधी मेरे साँसों की डोरअब छोड़ भी दोशराब पीने की होड़तुमसे है मेरा गठजोड़कितने परिवार बिखर गएबाल-बच्चे सब बिलख गएतुम तो करते अपने बच्चो से प्यारअब छोड़ भी दो ये व्यभिचारसजन तुमसे करती मैं प्यारकमला ताई की बेटीरोती है रोटी-रोटीपति मारता गाली देताबहुत करता अत्याचारदिन भर बैठा पीता शराबनहीं रखता कोई हिसाबजाने कैसा है वो कसाईबाप को नहीं देता दवाईउसकी दशा देख पतिदेवआँखे मेरी भर भर आईछुट गयी मुझसे रुलाईतुम तो करते मुझसे प्यारअब छोड़ भी दो शराबअब छोड़ भी दो शराब—–अभिषेक राजहंस
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bhut sundar…………………..
bahut sundar sandesh parak….par ‘vybhichaar’ upyukat nahin laga shabd wahan…..
बहुत ही सुन्दर कविता। मर्दों को सिख देने वाली कविता।
nicely expressed of thought with good lesson
Bahut sundar….