चाहा बहुत ना दिल से तुझे दूर कर सके भूलूँ तुम्हें ना वो मुझे मजबूर कर सके आनंद वो मैंने पा लिया जिसकी तलाश थी बाकी नशे ना मुझको कभी चूर कर सके एक तेरी उल्फत ने मुझे ऊंचा उठा दिया बाकी जतन ना मुझको यहाँ मशहूर कर सके यूँ तो दीवाने भी कई हर मोड़ पे मिले तेरी चाहतों के जैसा ना पर नूर कर सके रग रग में तुम ही बस गए शंका नहीं मधुकर तुमको मगर मलाल है ना सिन्दूर कर सके शिशिर मधुकर
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Kya gajab likha jai sir apne.very nice.
Tahe dil se shukriya Anjali ………..
Very nice….
Hearty thanks Anu ………
bhut sundar sringarik rachana apki…………
Bahut bahut shukriya Madhu ji ……..
Sir gajab hi dha gaye
तहे दिल से शुक्रिया अरुण…..
बहुत खूबसूरत शिशिर जी ………..प्रेम की सुखद अनुभूति ।
प्रथम पद की दूसरी लाइन में तुम्हे के स्थान पर शायद उन्हें सही अर्थ देता पंक्ति की मांग के अनुरूप ।
तहे दिल से शुक्रिया निवतिया जी.आपके सुझाव पर मैं निश्चित ही गौर करूँगा
Very Nice ……..
Thank you very much Kiran ji …..
सुंदर प्रेम की गाथा… बहुत बढ़िया शिशिर जी..
Dhanyavaad Bindu ji ……….
bahut khoobsoorat……………
Bahut bahut shukriya Babbu Ji ……….
गजब की रचना है। दिल खुस हो गया।
Tahe dil se shukriya Chandramohan Ji…………