Homeठाकुरचारहू ओर उदै मुखचँद की चाँदनी चारु निहार ले री चारहू ओर उदै मुखचँद की चाँदनी चारु निहार ले री विनय कुमार ठाकुर 27/03/2012 No Comments चारहू ओर उदै मुखचँद की चाँदनी चारु निहार ले री । बलि जो पै अधीन भयो पिय प्यारो तो एतो बिचार बिचारि ले री । कवि ठाकुर चूकि गयो जो गोपाल तो तैँ बिगरी को सुधार ले री । अब रैहै न रैहै यही समयो बहती नदी पाँव पखारि ले री ॥ Tweet Pin It Related Posts सेवक सिपाही सदा उन रजपूतन के बैर प्रीति करिबे की मन में न राखै सँक जिन लालन चाह करी इतनी About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.