क्या करूँ मैं तुम ही बोलो मेरा दिल तुमने तोड़ा है कहाँ ढूँढू सकूँ जब तेरे लिए ज़माने भर को छोड़ा है धारा रोक देने से नदिया घुट घुट कर मचलती हैकिसी भी हाल में उसने जलधि से मुँह ना मोड़ा है बदलते वक्त में अपनों से अब तो सुख नहीं मिलते स्वार्थ मन में भरा है हर तरफ और प्यार थोड़ा हैघरौंदे टूटने की अब तो हर ओर से आवाजें आती हैं कोई कहता नहीं मैंने नाज़ुक हुए रिश्तों को जोड़ा है सांस चलती है मधुकर ज़िन्दगी की डोर की खातिर मगर उमंगें नहीं दिल में इस कदर खून निचोड़ा है शिशिर मधुकर
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ………………..!!
Dhanyavaad Nivatiya ji ……..
Very. Nice Shishir JI
Thank you so very much Kiran ji ………
सुंदर रचना की प्रस्तुति… बहुत बढ़िया शिशिर जी..
Tahe dil se shukriya Bindu ji ………
Very nice…
Thank you Anu …………
ati sundar………………….
Dhanyavaad Babbu Ji ………….
bhut sundar rachana hai apki shishir ji…………
Tahe dil se shukriya Madhu Ji ……….
सांस चलती है मधुकर ज़िन्दगी की डोर की खातिर
मगर उमंगें नहीं दिल में इस कदर खून निचोड़ा है
खतरनाक पंक्तियां मधुकरजी
अति उत्तंम।
मेरी फरमाईश भी पूरी हुई सम्पूर्ण रचना की। साधुवाद।।
Aapke shabdon ke lie hraday tal se shukriya Ram Gopal Ji……..
Sundar
Dhanyavaad Arun………