नैनों में नैन डाल सब जज्बात कह गएतेरे हुस्न के नशे में यारा हम तो बह गएखिलते नहीं है फूल सदा जीवन के बाग मेंसोच कर यही तो हम हर ग़म को सह गएसीढ़ी बना के हमने कभी इंसा को ना ठगा पहुँचे ना शिखर पर तभी और नीचे रह गएअसली दीवानगी यहाँ कहने की बात हैसब खोखला मिला जो रिश्तों की तह गएमंजिल अगर मिले तो सफ़र नीक है मधुकरवरना तो यूँ लगता है उसपे हम बेवजह गएशिशिर मधुकर
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बेहद उम्दा….. पर एक शेर के शब्द भाव जो आप कहना चाहते दुसरे मिसरे में पहले उसके उलट भाव दे रहा…”सीढ़ी बना के हमने कभी इंसा को ना चुना” ऐसे लगता आप को जब ऊपर जाने का रास्ता मिल गया तो आप इंसान भूल गए…जबकि आप कहना चाहते की इंसान को आपने ऊपर चढ़ने के लिए प्रयोग नहीं किया…जो दुसरे मिसरे का भाव है…मकता आपका ये है…
मंजिल अगर मिले तो सफ़र नीक है मधुकर
वरना तो यूँ लगता है हम ही बेवजह गए
इसको ऐसे प्रयोग करें तो कैसे लगता है आपको…..
मंजिल अगर मिले तो सफ़र नीक है मधुकर
वरना सफर पे निकले थे सफर के ही रह गए
बब्बू जी आपके उत्कृष्ट सुझावों का शुक्रिया. उनको ध्यान में रखते हुए मैंने रचना में माइनर बदलाव किये हैं. आशा है अब आपको ये बेहतर लगेगी।
तहदिल आभार आपका…..बहुत बढ़िया….सर……
Bahut sundar rachna , Shishir ji…
Tahe dil se shukriya Anu ……………….
बहुत बहुत सुंदर।
Haardik aabhaar Bhaavnaa Ji ……….
“सीढ़ी बना के हमने कभी इंसा को ना ठगा
पहुँचे ना शिखर पर तभी और नीचे रह गए”
यही निचोड़ है. बहुत खूब.
Hraday se dhanyavaad Vivek Ji …………….
बहुत खूबसूरत रचना शिशिर जी …………………मध्यम शेर आत्मा है रचना की …………
Tahe dil se shukriya Nivatiya ji ……
Bahut sundar reach a Shishir JI
Tahe dil se shukriya Kiran ji ……….
bhut bhut sundar Shishir ji…………
Haardik aabhaar Madhu ji…..
dard aur sachhai mein bhigai hui umda rachna
Tahe dil se shukriya Arun……….