पूरा करने कमी को अपनी, मानव चलता तो हैआवेग की ऊष्मा से कभी पिघलता, सांचे में ढलता तो हैएक निशान तो रहना चाहिए समय का, फौलाद के जिस्म परदेखकर जिसे किसी का अश्रु, मुस्कुराकर निकलता तो है।थोड़ी बहुत खलिश रह ही जानी चाहिए बाकी रिश्तों मेंगिला, शिकवा, बद्दुआ,भड़ास में मैल कुछ निकलता तो हैदुखी न होना है उसके रुखे, सूखे, ज़िद्दीपन सेयादकर जिसे किसी की दुआओं का, मरहम निकलता तो है
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awesome..
विवेक जी, आपने रिश्ते की बात बहुत अच्छी तरह मार्मिक ढ़ंग से की… काबिले तारीफ की रचना है…. बहुत बढ़िया….
बहुत खूबसरत
बहुत उम्दा विवेक जी , ……………..जीवन के कटु सत्य को संप्रेषित किया आपने । आपसी गिले शिकवे, मन मुटाव सब प्रेम के ही तो धोतक है । अकारण तो ये सब भाव कहि उत्पन्न नही होते ।
Beautiful Lines 🙂
very very nice !!!
उत्तम, हिन्दी को आज आप जैसे लेखको की ही आवश्यकता है
बहुत ही सुंदर रचना.
मेरी रचनाएँ “भिखारी” और “पूनम का चाँद” भी नजर करें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
Bahut sundar…
behad sundar………..
Bahut hi sundar
behad khoobsoorat……………..