है धूल में ही मूल समायाkiran kapur gulati किरन कपूर गुलाटी 14/07/2017 16 Commentsकहे कुम्हार है यह माटीजो उगले हरदम हीरे मोतीदेती यह जीवन दान हैउपजाती भी धन धान हैधूल कहो यॉ कह लो माटीकैसे कैसे आकार रचातीरंग बिरंगे फूल खिलातीबीहड जंगल पहाड़ बनातीइसी से उपजे इसी में जानाहै ग़ज़ब यह ताना बानामाटी का माटी में मिलनाखिलके फूल का धूल में मिलनाभाता बहुत है खिलना खिलानामगर इक दिन है सब जानाहै जीवन क्रम चॉद सूरज का ढलनाजादू हर पल नियति का चलनाकिसी का आना किसी का जानाहै ग़ज़ब का ताना बानाहै उपकार बड़ा माटी का मानास्वरूप से उसके ,जीवन को जानादेन है इसकी यह सुन्दर कायापर जब है जाना ,सब छोड़ के जानादेखा सब तो हमने पायाइस धूल में ही है मूल समायान जाने क्यूँ यह खेल रचायाजग को जाने क्यूं भरमायाअद्भुत मोहक जाल सजायाउपजे माटी से माटी में जानाजब जाना , माटी हो जाना
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बहुत ही खूबसूरत रचना मैम।
बहुत सुन्दर बात कहि आपने किरण जी …..मूल तो धुल में ही समाया है कारण कुछ भी हो सत्य यही है कि उसको नज़र अंदाज़ कर देते है।
खूबसूरत रचना.
बहुत सुंदर रचना.
Satyaparak sundar daarshnik rachnaa Kiran Ji ………..
Bahut hi sundar rachna hain aap ki
bahut hi sundar………..jeevan ka saar……pahle bhi post ki hai aapne…..