कही पर भाषा की है लड़ाई,कही पर अहम् की है लड़ाई,कही पर अस्तित्त्व की है लड़ाई,कही पर बेवजह की है लड़ाई|बस चारो हो रहा है, अब शोर,नेताओ में भी, बस लगी है, होड़,वोट बैंक, जब तक बनके रहोगे,उनके काम, सब यूँही आते रहोगे|अब देर न करे, सब सम्भल जाए,अब न कोई हमे इस्तेमाल कर पाए,यह देश अपना है, इसे हम अब सींचे,सच और झूठ में फरक करना सीखे|औरो की गलतियां निकाल ने से पहले,अपनी गलतियों को भी जरा सुधार ले,अब औरो को ज्ञान बाँटने से पहले हम,अपने अंदर का अँधियारा दूर करले हम|औरो को बदलने से पहले,खुद को ही हम पहले बदले,खुद अगर सुधर गए सब,देश भी बदल जाएगा तब| अनु महेश्वरीचेन्नई
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सही कहा आपने खुबसूरत रचना।
Thank You, Bhawana ji…
Satya kaha aapne Anu ………
Thank You, Shishir ji…
बदलने की जरूरत है… हम बदलेंगे… तभी संभव है समाज में परिवर्तन….. बहुत बढ़िया…
Thank You, Bindeshwar ji…
ठीक कहा आपने अनु जी
Thank You, Arun ji…
अनु जी बहुत ठीक कहा आपने , अच्छे विचार हैं
Thank You, Kiran ji…
सुन्दर विचार अनु जी ……….बदलाव वो भी सकारात्मक स्वयं में आवश्यक है । यक़ीनन ज्ञान के प्रसार के साथ साथ ग्रहण करने की इच्छाशक्ति का प्रबल होना भी उतना ही आवश्यक है।
Thank You, Nivatiya ji…
सुन्दर विचार. बहुत बढ़िया…
Thank You, Vijay ji…
सत्य कथन……………
Thank You, Sharmaji…