सूखे पत्ते की तरहआज हर रिश्ताधीरे धीरे धाराशाहीहोता जा रहा हैरिश्ते टूटने की खबर सेबेखबर इन्सान कोअपनी नौका(जीवन) के आगेहर रिश्ता बौनानजर आ रहा है।लोग ये नहीं समझतेजब जब रिश्ते टूटते हैनौका ठहर सी जाती है।और इन्सान बिल्कुलअकेला रह जाता हैइस विशाल समुद्र(दुनिया) मे।तब कहीं समझ में आता हैनौका का समुद्र मेंअकेला रहने से ज्यादा गमरिश्ते टूटने से होता है।फिर भी विशाल रुपी समुद्र मेंनौका तो चलती रहती है।पर रिश्ते कभी नहीं जुड़ पातेऔर कभी जुड़ भी गएतो उसकी डोर इतनीकमजोर होती हैकि हल्की हवा के झौके मेपुनः टूट जाती है।और धीरे धीरेरिश्ते के धागेइतने कमजोर हो जाते हैंकि दूर दूर तकउसके जुड़ने कीकोई किरण नहीं दिखती।और रिश्ते का धौरंदारेत की महल की तरहधाराशाही हो जाता है।
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खूबसूरत अवलोकन ………….आपकी भावाभिव्यक्ति अति सुन्दर है …………..!!
धन्यवाद सर,मुझे प्रोत्साहित करते रहिए।
रिश्तों के बीच की दूरी को लय वध तरीके से अच्छी कोशिश… भावना जी आप दूसरों की रचना में भी अपनी प्रतिक्रिया दें….. Thanks…
धन्यवाद सर।
बहुत ही सही कहा आपने
शुक्रिया
Bahut sundar….
शुक्रिया
Bhaav achche hain. Kuch sthan par sudhaar se rachnaa ko or behtar aap banana sakti hain…….
धन्यवाद सर।ऐसे ही मुझे मार्गदर्शन देते रहिए। अच्छा लगा।
आज रिश्ते नाते निभ जाए
यह भी है इक बात बड़ी
स्वार्थ ही सब से बड़ कर है
टूट गई रिश्तों की कड़ी
सही कहा आपने मैम।आज के जमाने में वयक्ति अधिक स्वार्थी होता जा रहा है, जिसके आगे उसे किसी कुछ दिखाई नहीं देता।शुक्रिया।
खूबसूरत रचना.
बहुत खूबसूरत सत्य कथन……”रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए….टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए”……