नगर ———–नगर में उगते नहीं है चौड़ी रिश्तेवाली हरी खेत नगर में उगते है तंग रिश्तेवाली गमले की फूल नगर में होता नहीं सोहराय ,साकरात और बाहा पर्व नगर में होते है पर्व बड़े -बड़े होर्डिंग में दिवार पर चिपकी शॉपिंग मॉल की डिस्काउंट देनेवाली विज्ञापन पर नगर में लोग पूछते नहीं हल -चाल वे केवल अपनी जरुरत ही प्रकट करते है नगर में बारिस होती है पर आता नहीं सावन बच्चे भींगते नहीं है खुसी से नगर में आम की डाली से गाती नहीं है कोयल नगर में न सुनाई देता है बाँसुरी की धुन न औरतों की गीत की बोल नगर में होते नहीं है मांझी की अखड़ा में नगाड़ा और मंदार की थाप पर युवक -युवतियों की नाच नगर में केवल रेडियो और टेलीविजन पर ही गाते है लोग नगर को चौड़ी सड़कें और तंग गलियों में टहलते समय फँस सकते हो वहाँ की तंग दिल की काली कीचड़ में।
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Bahut khoobsurat rachna
धन्यवाद अरुण जी
अति सुंदर… कटु सत्य को प्रदर्शित करती रचना….
धन्यवाद सरजी अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए
अति ख़ूबसूरत रचना
धन्यवाद मरुत जी अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए। इसी तरह अपनी प्यार अर्पण करते रहे
Bahut sundar…
धन्यवाद अनुजी अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दने के लिए।
सत्य कहा आपने।अति सुंदर रचना
धन्यवाद भावना जी अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दने के लिए।
bhut sundar aur stik bat ko rachana me bkhubi likha hai apne……….
धन्यवाद आपको ,अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रया देने केलिए
Waahhhh…..Bahut khoobsoorti se aapne stay ko likha hai…..dikhaawe ke sachaayee mein antar……
धन्यवाद आपको ,अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रया देने केलिए
बहुत खूबसूरत ………………!
धन्यवाद निवति जी अपनी बहुमूल्य समय निकाल कर कविता पढ़ने के लिए और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए।