अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले पर आक्रोश व्यक्त करती मेरी कविता* ????????महाकाल के दर्शन करने गए थे जोवे ही खुद काल के मुंह मे समा गएक्या थी उनकी गलती कोई तो बताए मुझेक्यो बेचारे बेकसूर अपने प्राण गवां गएदिल में एक आस लिए भक्ति की प्यास लिएचले थे वे भक्त दर्शन करने महाकाल काभक्ति में लीन थे वे सारे भक्तजनपता ना था उन्हें उन शैतानों के चाल काना था किसी से बैर उनका ना किसी से भेदभावसबके मुँह में एक ही भोलेनाथ का ही नाम थाकुछ कुत्ते भेजकर ले लिए प्राण उनकेनापाक इरादे वाले ये पाकिस्तान ही काम थादेकर एक ओर दंश ये हमे आतंक कावे हमारे सब्र के बांध को बहा गएनिद्रा की अवस्था मे जो थे श्रद्धालुकुछ कुत्ते उनके ही खून से नहा गएकब तक सहते रहेंगे हम उनकी गुस्ताखियी कोकब तक निर्दोषो का यूँ ही कत्लेआम होगाबहुत बढ़ गयी है ये पाक की नापाक हरकतेआखिर अब इन कुत्तो का जड़ से काम तमाम होगाकड़ी निंदा करने से कुछ नहीं है होने वालाउनको उन्हीं की भाषा मे जबाब देना चाहिएऔर सिर्फ चेहरे से दिखते है जो *शरीफ*उसे तो उसी के कुत्ते का बनाकर *कबाब* देना चाहिएऐसा जख्म दो उन आतंक के आकाओ कोकि देख सभी की रूह कांप जाएगीऔर जो भी बुरी नज़र उठाएगा भारत की ओरउसको पहले उन शैतानों को दी हुई सजा याद आएगी© *पियुष राज**दुमका झारखण्ड**मो-9771692835**P69/13 जुलाई 2017*
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khoob kaha apne……….. aakrosh vyakt karti rachana……
इनसानियत आज रही नहीं ,सुन्दर भाव
आकोश जायज़ है…………..इंसानियत के साथ हैवानियत सदैव रही है….फर्क इतना है कब कौन किस पर भारी है…..इस अन्तर को समझकर उचित कदम उठाना ही इंसानियत का कर्तव्य और जिम्मेदारी है।
पियूष राज जी…..आपका आक्रोश जायज़ है….पर क्या हम अपने को ऐसी जगह यात्राएं करने से रोक नहीं सकते क्या कुछ टाइम के लिए…..ये सब हम से कमाई करके हम पे ही आक्रमण करते हैं…कुछ तो इन लोगों को अहसास होना चाहये अगर हम यात्रा ऐसी नहीं करते….किसी दुसरे पे दोष हम तब लगा सकते जब हम में कमज़ोरी न हो….हम अपने आप में सतर्क और चौकस नहीं तो कोई भी लाभ उठा सकता है….. पडोसी को कोसने से पहले हमें अपने को मजबूत करना है…अपने झगडे को ख़तम करना है…. नहीं तो पडोसी चाहे मोहल्ले का हो या बार्डर पे वो मजा लेगा…..हमारी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाएगा ही…
समसामयिक विषय पर सुंदर रचना.
मेरी रचनाएँ “भिखारी” और “पूनम का चाँद” भी नजर करें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
सुंदर
Bahut khoob kaha aap ne janwar ko janwar ki sabdo mein hi samjhaya ja sakta hain kutte insano ki bhasa
बहुत सही कहा आपने.. जले पर नमक डालकर खुद मरते हैं भाड़े के टट्टू…
खूबसूरत रचना