भीड़ में भी तन्हा क्यों है हम,क्यों टूटे टूटे से है हम.जोड़ते है जिन रिस्तो को हम,बड़ी सिद्दतों के साथ हर वक्त,क्यों पड़ जाते है अकेले हम.क्यों मन मेरा रूठा है,क्यों मन मेरा सूना है,जिंदगी है ,सपने है ,जो लोग है,उनमे बहुत अपनापन है.अपने ही बारे में इतने सवाल क्यों है,अपने मन मे इतने विचार क्यों है.क्यों कुछ पाने से,कुछ खोने से डरते है हम.क्यों भीड़ में भी तन्हा है हम,क्यों टूटे टूटे से है हम…क्यों टूटे टूटे से है हम….क्यों तन्हा तन्हा है हम…
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Udaas man ke bhaavnaao ki sundar abhivyakti Anjali.
Thanku sir
विचलित ह्रदय के भावो को अच्छे शब्द दिए आपने ……..अति सुन्दर !
Thanku sir
ATI SUNDAR
Thanku
Sundar at I sundar
Thanks for reading my poem
जब भी कोई ख्यालों के समन्दर में, बहकर जाता है
कुछ पल के लिए अपना कोई,
दिल में उतर आता है
Thanku sharma sir
antarman ke bhaavon ko khoob ukera hai aapne……………..
Nice….
Thanku mam
सुंदर भावों से युक्त रचना.
Thanku vijay sir
Thanku vijay sir
A lot of thanks