क्यों और कैसे,किसी के भी, कुछ भी,कह देने भर से ही,आपा खो बैठते है लोग?क्यों और कैसे,उनकी समझ पे,ताले लग चुके होते है, और,इंसानियत भी भूल जाते है लोग?क्यों और कैसे,अपना संयम खो,कानून अपने हाथ में लें,हिंसा करने लगते है लोग?क्यों और कैसे,हैबानीयत पे,उतर आते है, और,अपनों को ही घाव दे जाते है लोग?क्यों और कैसे,भूल जाते है लोग,धर्म चाहे कुछ भी हो,सब से पहले हम इंसान है?क्यों और कैसे,किसी की आस्था,इतनी कमजोड़ हो सकती है,यह तो, अटूट होनी चाहिए थी?कोई भी धर्म, बैर कभी नहीं है सिखाता,वह बस जीने की, सरल राह है सिखाता,यह तो इंसान है, जो करवाहट घोल देता है,मह्जब के नाम पे, नामों को भी बाँट लेता है,अब जब आतंकबाद ने सर उठाया है,अगर इसे हमे सफलतापुर्वक हराना है,सब कुछ भूल के, हमे साथ आना है,बस एक ही बात, हमे याद रखनी है,सब से पहले हम इंसान है,सब से पहले हम इंसान है| अनु महेश्वरीचेन्नई
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Dil ki gehraiyo ko sparsh karti hui sundar rachna
Thank You, Arun ji…
बिलकुल सही.लेकिन काश ऐसा हो पाता
Thank You, Shishir ji…
बहुत सुंदर……………
Thank You, Vijay ji…
सुन्दर कविता ,आपने सही अर्थ में लोगों को मानवता का पाठ लिखा है। अब आधुनिक समाज जो की विज्ञान का युग भी कहलाता है में मजहब के नाम पर तो नहीं ही लड़ना चाहिए।
Thank You, Chandramohan ji…
bhut khoobsurat dhng se गूढ़ bat ko kha apne anu ji………
Thank You, Madhu ji…
Bahut aawashak hai aaj ke paripekchh me inshan ka inshan hona.
Thank You, Saviakna ji…
behad umda bhaav….kaash aisa ho jaaye…….behad khoobsoorat………..
Thank You, Sharmaji…
बहुत ही मार्मिक और भाव पूर्ण रचना… मानव को अपनी मानवता याद रहे…. हम यही चाहते हैं…
Thank You, Bindeshwar ji…
Very Nice thought ANU JI.
Thank You, Nivatiya ji…