चलो, अब जिन्दगी को करीब से देखा जायेगरीब की झोपड़ी में झाँक के देखा जायेयहीं पे ईश्वर और उसकी आस्था बसती हैचलो, गरीब के आँसू तैर के देखा जाये। कल ही रात में बड़ी जोर की बारिश हुई थीझोपड़ी ढह गई होगी जाके देखा जायेमुआवजा माँगती वहाँ कई लाश तो होंगीउनकी मुस्कराहट को पास से देखा जाये। चलो, अब जिन्दगी को करीब से देखा जायेइक चमचमाती कार में चल के देखा जायेबहुत सुखद लगता है गरीब का दर्द देखनाचलो, भूखे बच्चे को तड़पते देखा जाये। बहुत ऊब गये सूखे ये खलिहान देखकरअब बाढ़ में सब डूबते बहते देखा जायेया घृणा की लपटों से खाक हुई जिन्दगी कोगर्म राख में खुद को बटोरते देखा जाये। अधकचरी जिन्दगी फुटपाथ पे देखी जायेनन्हें बच्चों को भीख माँगते देखा जायेकचरा बीनती जिन्दगी की फटी झोलियों मेंआस की चिन्धियों को करीब से देखा जाये। चलो, अब अपने ही गाँव, शहर, गली, कूचों मेंअपनों का जीवन भी करीब से देखा जायेजिन्हें कहते थे अपना हम प्यार पाने कभीउन्हें वृद्धाश्रम में गम पीते देखा जाये। उनकी अंतिम साँस क्या दुआ देती है देखेंचलो, बूढ़े आँसू को तड़पता देखा जायेपाँव कँपते हैं, उठते नहीं, अब क्या करेंचलो, वापस कार में बैठ के देखा जाये। पर तभी पंछी पंख फड़फड़ाते कहने लगेगैर जिन्दगी को क्या करीब से देखा जायेतज गुरूर अब तू अपनी यह ढलती शाम देखमन से कह ‘खुद को ही करीब से देखा जाये’। … भूपेन्द्र कुमार दवे 00000
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सुंदर रचना.
बहुत भावुक………तीखा कटाक्ष किया है दोहरी मानसिकता पर….लाजवाब…………
अति सुन्दर
अति सुन्दर कविता
अति सुन्दर
bhut hi achhi rachana …….bhav to khoob hai……
स्वार्थी इंसानी जीवन की झूठी सोच पर तीक्ष्ण प्रहार करती खूबसूरत रचनात्मकता ……!