एक पहेली ही तो है, बस जीवन अपनाकब, कहाँ, क्या, कैसे, हो जाए घटनाजिसे समझ सके, न हम कभी,वही पे विवश नज़र आते सभी,ऊपर वालें के ही हाथ है सभी की डोरइंसान फिर क्यों मचा रहा इतना शोर?
कब कौन राजा से रंक बन जाए,कब कौन जहाँ से ही चला जाए,यह नहीं इंसान के बस में जब,खुद को ज्ञानी माने कैसे है तब,क्यों फिर मन में इतना बैर तुम पालते हो,अगले पल का ठिकाना भी, नहीं जानते हो?
दुःख में क्यों ज्यादा दुखी होते हो,सुख में क्यों ज्यादा सुखी होते हो,अगर संतुलन रखना ही, सीख लेते तुम,किसी भी परिस्थिति में, न घबराते तुम,जीवन को धैर्य के साथ, फिर जी लेते तुम,ज़िन्दगी जीने की कला, सीख ही लेते तुम|
अनु महेश्वरीचेन्नई
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सुन्दर रचना …, आदर्श जीवन का सुन्दर मन्त्र ……..,
Thank You, Meena ji…
बहुत ही सुंदर अनुपम और जिन्दगी में उतार लेने की एक प्रेरणास्रोत अनोखी मंत्र…
Thank You, Bindeswar ji…
संतुलन रखना सीखना ही सबसे बड़ी कला है. अति सुन्दर
Thank You, Shishir ji…
जीवन को सीख देनेवाली एक सुन्दर कविता।
Thank You, Chandramohan ji…
Bilkul sahi chintan hain aap ka
Thank You, Arun ji…
bhut sundar ,sahi kaha apne anu ji…………………………
Thank You, Madhu ji…
maargdarshan karti……steek….behad khoobsoorat………..
Thank You, Sharmaji…
बहुत ही सुंदर रचना. प्रेरणादायक.
Thank You, Vijay…