भाग-329.06.2017, सुबह:पांच दिन के बाद जब मैं निवास पर वापस अकेले लौटा:दो बच्चे आँखे बंद, घोंसले में सुस्त पड़े दिखे मुझकोतीसरे अंडे का क्या हुआ, आइडिया नहीं है मुझको।30.06.2017: सुबहकल के बनिस्पत, आज कुछ मजबूत दिख रहे हैंदोनों की आँखें खुली हैं, थोड़ा-सा हिल-डुल रहे हैं।पैरेंट्स में है तालमेल, वे अथक प्रयास कर रहे हैंवे अपने बच्चों की, ठीक से देखभाल कर रहे हैं।प्रायः एक बुलबुल घोंसले के पास रुक जाता हैदूसरा साथी, दूर कहीं चारा लेने चला जाता है।कितना मैं खुश होता, अगर बाल-मन मेरा रहतान बिल्ली का डर होता, न गर्मी का अंदेशा रहता।फोटो मैंने खींचा, बच्चे चुप-चाप नीड़ में पड़े हुए हैंसंतोष है मुझको बहुत, अभी वे सुरक्षित पल रहे हैं;मुझे लगता है, दोनों बुलबुल के भी यही अरमान होंगेकुछ हफ़्तों से दिल में मेरे, जैसे अरमान मचल रहे हैं-‘छोटे से वे बच्चे, अभी जो आराम से पड़े हुए हैंवे दोनों मज़बूत बनें, घोंसले से बाहर उड़ सकें;आसमान में, उन्मुक्त चक्कर पे चक्कर काट सकेंअपनी हिफाज़त कर सकें, खुद वे चारा चुग सकें।’01.07.2017: सुबहदेखते-देखते उनके परों का हुआ, काफी तेज विकासउनमें का एक बच्चा कुछ, ज्यादा होनहार लग रहा है;कभी मादा, कभी नर बुलबुल, आ रहा है, जा रहा हैरखवाली भी हो जा रही है, चारा भी लाया जा रहा है।02.07.2017: सुबहअब गर्मी का नहीं है खतरा, मौसम काफी खुशनुमा हो गया हैयहाँ, परसों शाम से रह-रह कर बारिश का जो आगाज़ हो गया है।अल-सुबह ही, एक चिड़िया भीग कर चारा लाई थीबच्चों को छोड़ कर, जाने कहाँ वह रैन बिताई थी!02.07.2017: शाम(आज हफ्ते की छुट्टी में, मैं घर पर था)आज दिन में, चिड़िया कम ही बार आई थीएकाध बार ही बच्चों के लिए चारा लाई थी।03.07.2017: 05:13 AM(यहाँ पर, हल्की सी बूंदा-बांदी हो रही है)एक बुलबुल, अपने बच्चों से मिलने आया हैलगता है मुझे, चोंच में चारा भरकर लाया है।05:50 AMएक बिल्ली को कमरे में से आता देखा तो मैं घबराया थाफुर्ती से उसे भगाया, बच्चों को सही-सलामत पाया था।06:15 AMदोनों पैरेंट्स बच्चों तक बार-बार आ रहे हैं, जा रहे हैंइंतजार मैं तो कर रहा हूं, वे कब तक उन्हें उड़ा रहे हैं!06:30 AMएक घोंसले से बाहर आ चुका है, डोरी पर बैठा हैदूसरा घोंसले में, उड़ने की तैयारी में तैनात खड़ा है।06:50 AMदूसरा बच्चा भी घोंसले को छोड़ बाहर आ चुका हैअब दोनों पैरेंट्स की हरकतें काफी तेज हो चुकी हैं, बुलबुल बार-बार चहक रहे हैं,पंख में तेज कम्पन कर रहे हैं बच्चे को खिड़की से बाहर लाने का यत्न कर रहे हैं।07:10 AMवाह! बच्चा खिड़की से बाहर उड़कर जा चुका हैएक बुलबुल लगातार उड़ने की विधा सिखा रहा हैअब, वह अमरूद की टहनी पर जा कर बैठ चुका हैबच्चे के उड़ने का दृश्य मेरे कैमरे में कैद हो चुका है।07:50 AMदूसरा बच्चा, अकेले कमरे ही में छूट चुका थामैं देखने गया, नहीं दिखा, गायब हो चुका थामैं घबराया, छत पर, बाहर, ढूंढने लग गया थाथोड़ी देर बाद, कमरे के फर्श पर मिल गया था।झट से मैंने उसे पकड़ा, टहनी पर छोड़ दिया था।08:33 AMदोनों बच्चे साथ-साथ पतली शाख़ पर बैठे हुए हैंदोनों बुलबुल, उनकी देखभाल में निरत जुटे हुए हैं।***** ***** ***** ***** *****इस तरह, रब ने मेरे दिल की एक और, आरज़ू को पूरा कर दिया हैमैंने सज़दे में गिर कर बारगाह-ए इलाही में शुक्रिया अदा किया है।सब को पैदा करने वाला, पालने वाला एक ख़ालिक़ ही हैहमारी हाज़तों व दुआओं की लाज रखने वाला एक मालिक ही है।।आमीन, सुम्मा आमीन।********************************************निष्कर्ष: बुलबुल के मोतल्लिक:1. अण्डे के हैचिंग का पीरियड: 15-16 दिन2. बच्चों का घोंसले में रहने का पीरियड: 6-7 दिन3. तीन अंडों में से एक डमी हो जाता हैबाद में बुलबुल उसे खुद खा जाता है।4. रोटी, आटा, चना, चावल, आम को नहीं छूता हैअनार, पपीता, मूंग पा जाए तो वह खा जाता है।5. बच्चों को घोंसले से बाहर निकालने के दौरानबड़ों की गतिविधियां होती हैं तेज, लगते हैं हैरान।6. बुलबुल बहुत सोच समझ कर घोंसले को बनाता हैजरा-सी छेड़-छाड़ हो जाय तो, मुश्किल से वापस आता है।7. कभी न दिया था ध्यान, था मैं बिलकुल अनजानहो गई मुझको अब बुलबुल के आवाज़ की पहचान।8. मैं अपने आप को बहुत खुशनसीब समझता हूं-मुझे देखने को मिला, क़ुदरत का एक अद्भुत करिश्मा, यानी बच्चों का होता तेज विकास;मेरी आँखों के ही सामने सुरक्षित बाहर की फिज़ा में पहुंचने का बच्चों का अनुपम प्रयास।(ख़ालिक़=रचयिता, हाज़त=जरूरत)…र.अ. bsnlContd/-
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सृजन की खुशी बहुत विशेष होती है. जिसके बोध से मिलने वाली खुशी आपकी इस रचना में झलकती है
शिशिर जी
आप का हार्दिक साभार।
सर, इसमें editing की कुछ त्रुटियां
रह गई हैं, जिन्हें मैं कल दूर करने की कोशिश करूंगा।
जो नए पाठक जन हैं,
सम्बंधित, पिछली दो रचनाएं पढ़ेंगे,
तो पूरी तरह से मेरी भावनाओं के अनुकूल,
रूबरू हो सकेंगे।
behad romanchit karne wali…….bahut hi khoobsoorat hakeekat…….sab ka bachpan ek jaisa hi hota…insaan ho ya pashu pakshi…….apna bachpan yaad aa jaata hai…maa baap kaise care karte the…..
Babbu Ji
A lot of thanks to you, for your keen reading,
to be compatible with my sentiments and
valuable comments pl.
बहुत खूबसूरत ……………………अंतत: आपका रचनात्मक सार यह स्पष्ट करता है की यह पूर्ण घटनाकर्म आपके लिये एक साहित्यिक परियोजन सिद्ध हुआ जिसका गहनता से अध्ययन कर आपने दर्शन शात्र में एक उपलब्धि प्राप्त करने के समान है !
Niwatiya Ji
aap jaise, guni jan logon kee kasauti par
jab koi rachana khari utarati hai to
atyant santosh hota hai.
Again, A lot of thanks to you, for your keen reading,
to be compatible with my sentiments and
valuable comments pl.
बहुत खूबसूरत रचना.