भीड़ का न कोई चेहरा होता,न ही कोई जात, या श्रेणी होती है,यह तो बस अराजकता के शिकार,कुछ लोगो का एक समूह होता है|
यह अक्सर बेकाबू हो जाती,न देख पाती, न ही सुन पाती,बस भावनाओ में बहकर ही,गलत-सही फैसला ले लेती|
उसके कानो तक किसी की,पुकार भी नहीं पहुँच पाती है,न ही उसे किसी का दर्द दिखाई देता है,दरअसल भीड़ के आँख, या कान होते कहाँ है?
लोग भी बिना सोचे समझे,उस भीड़ के साथ जुड़ते जाते है,और बस थोड़ी ही देर में,सब कुछ तहस नहस हो जाता है|
वहाँ इंसानियत मरती है,मानवता शर्मशार होती है,पर किसी को भी फरक नहीं पड़ता,भीड़ हुड़दंग मचाती रहती है|
कभी कभी कुछ नेता गन भी,अपने फायदे के लिए ही सही,इस्तमाल करते इस भीड़ को ही,यह सब बस चलता आ रहा है|
नुकसान तो हो चूका होता है,इंसानियत का दम, घुट चूका होता है,हम निजी ज़िन्दगी में, फिर मशगूल हो जाते है,कुछ दिनों बाद, सब कुछ भूल भी जाते है|
लेकिन कब तक?कब तक हम यूँ मूक बने देखते रहेंगे?आज़ादी के नाम पर, बेकाबू भीड़ को, बर्दाश्त करते रहेंगे?क्या इस भीड़ को रोकने में, हम कोई भूमिका निभा नहीं सकते है?
अनु महेश्वरीचेन्नई
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बहुत सुंदर विषय को छुआ है आपने ……………मगर हकीकत कुछ और होती है ………..कभी भी कोई सामान्य आमजन इस भीड़ का सूत्रधार नहीं होता ….कहने..देखने या सुनने को हम इसे भीड़ का नाम दे देते है….मगर वास्तविक रूप में एक सोची समझी योजनाबद्ध साजिश का एक हिस्सा होता है !
Thank you, Nivatiya ji…kabhi kabhi sazis bhi hoti hogi. Par aksar samanya jan is bhid ka hissa ban jate hai….jinhe pata bhi nahi hota baat start kyo hui thi ya kab hui….kabhi kabhi media jise sazis dikhati vah sazis nahi logo ka aakrosh bhi hota hai…jo bhid ka hissa ban jate….
Important point has been touched….
Thank You, Shishir ji…
भीड़ मतलब हताशा… एक तमाशे की तरह निराधार…. बेमतलब,.. न कोई सुनने वाला न ही समझने वाला…. बिलकुल वाहियात…. सामुहिक सिष्टाचार से परे…. अधूनिकता इसी की होड़ में बहती फिसलती जा रही है…. बहुत बढ़िया अनु जी.. एक आईना जो आपने दिखाया… काबिले तारीफ की है….
Thank you, Bindeshwar ji…
इस भीड में सियासत करने वाले अपनी रोटियां सेकते हैं। लेकिन जो भीड का हिस्सा बनते हैं , उनका भी ब्रेन वॉश किया होता है। आज के परिप्रेक्ष में कश्मीर में पत्थरबाज युवक भी इसी भीड का हिस्सा बनते जा रहे हैं। ऐसे गम्भीर विषय को बिल्कुल सीधे सादे शब्दों में बयान करना वास्तव में अच्छा प्रयास है। प्रशंसनीय।।।
Thank You, Ram Gopal ji….
kavita bahut sundar hui hai ,darasal aaj kaal dekha ja raha hai go mata ki tathakathit bhakt log bhid juta kar bagunahon ko mar de rahe hai jo bahut hi galat baat hai .maheswari ji aapne sahi bishay ka chunav kiya hai
Dhanyabad sir….kanun hath me Lena kahi bhi thik nahi…
bahut badhiya……sahi chintan……….
Thank You, Sharma ji…
Bahut ache mam….aajkal k halat pe sahi…..par kafi had tak hmara kanoon bhi galat h soft h….koi bhi rapist rape kre murder kre…jail me uska poora khyal rkha jata h…aur agr rapist ko bheedh saja de de to bhi hme bura lgta h….kanoon thik hota to bheedh k kaan aankh bhi kaam krte….
Thanks Amar….fir bhi kanun hath me lena thik nahi na,
Bahut badhiya anu ji bilkul sahi kaha hain aap ne
Thank You, Arun ji…
बहुत सुन्दर……….. बहुत ही बढ़िया…..
Thank You, Kajal ji…
Behad sunder……………………….
Thank You, Vijay ji…
बहुत सुन्दर
Thank you, Rishi ji…