जीविका और जीवन की खींचतान में से,आत्मश्लाघा व आत्मसम्मान में से,व्यापक चाटुकारिता और अल्प स्वाभिमान में से,मैं तो विकल्प को संकल्प कर चुनूँगा ।।द्रुत-धनवान और पुष्ट खानदान में से,ठंडे वातानूकूल और उष्ण सूर्यपान में से,शोक-प्रसार और हर्ष-दान में से,मैं तो विकल्प को संकल्प कर चुनूँगा ।।द्रव-रसायन और दुग्धपान में से,छद्मवेषी धूर्त और वीर जवान में से,धूम्र-शोषक जीव और दारा पहलवान में से,मैं तो विकल्प को संकल्प कर चुनूँगा ।।ऐश्वर्य-कोलाहल और सन्तोष-मुस्कान में से,सुखमय प्रासाद और राणा की आन में से,द्रोण के सीमाओं और व्यापक एकलव्य-तान में से,मैं तो विकल्प को संकल्प कर चुनूँगा ।।विजयी अधर्म और पराजित कवच-दान में से,सूर्पनखा के छद्म में और हाड़ी के शीशदान में से,निर्भया पर मौन और द्रौपदी-सम्मान में से,मैं तो विकल्प को संकल्प कर चुनूँगा ।।जीविका और जीवन की खींचतान में से,आत्मश्लाघा व आत्मसम्मान में से,व्यापक चाटुकारिता और अल्प स्वाभिमान में से,मैं तो विकल्प को संकल्प कर चुनूँगा ।।
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Atyant khoobsoorat rachnaa. Lekin Vivek ji. Sankalp kar chunne vaalon ko aaj keval Vednaa sahni padhtee hai. Aur aise vyaktiyon ki sankhya nagany hai.
आपकी त्वरित व गूढ़ प्रतिक्रिया के लिए साधुवाद। आपने बिल्कुल सही कहा शिशिर जी। किन्तु किसी को तो नींव की ईंट बनना ही होगा। भवन का कंगूरा बनने ही होड़ तो सभी को होती है। आखिरकार भवन की आयु नींव पर निर्भर करती है। तपना तो पड़ेगा।
आपकी रचना और रचनात्मक दृष्टि कोण चारो युग को छूती हुई एक और एकमात्र एक संकल्प निष्क्रियता कि ओर इंगित करती है.
आपकी प्रोत्साहक टिप्पणी के लिए आपका अभिनंदन मान्यवर।
मैं तो विकल्प को संकल्प कर चुनूँगा
kya khoob kaha, Vivek ji.
आपकी प्रोत्साहक टिप्पणी के लिए आपका अभिनंदन मान्यवर।
bhut khoobsurat rachana……….. gajab…………..
आपकी प्रोत्साहक टिप्पणी के लिए आपका अभिनंदन मधु जी।
Bahut sundar rachna…
आपकी प्रोत्साहक टिप्पणी के लिए आपका अभिनंदन अनु जी।
बहुत खूबसूरत सारगर्भित रचनात्मकता विवेक जी ……. विडंबना यही है की समुन्द्र मंथन से सबको अमृत चाहिए विष का हकदार बनने को कोई राज़ी नहीं, या वर्तमान परिपेक्ष्य में कहे तो आज़ादी सबको चाहिए मगर वतन पर मिटने वाला कोई दूसरा हो अपना नहीं !.
बिल्कुल सही कहा आपने निवातिया जी। आपकी टिप्पणी के लिए आपका अभिनंदन मान्यवर।
बेहद उम्दा………आप ने सही कहा बिना त्याग के तपस्या के कुछ नहीं मिलता….और इतिहास जो तपते हैं उनसे ही बनता…क्रांति उनसे ही आती है…..
बहुत ही खूबसूरत लाइन्स है vivek .सर
बहुत खूब………… लाजवाब रचना……..
Bahut hi sunder……………………..
बहुत ही सुंदर रचना….👍👍👍