देखो कैसे याद दिलाती है?, उन बातों को ख़ामोशी।क्या हुआ था-क्या नहीं?, फ़िर यह कैसी मदहोशी?कुछ पूछे या कुछ बोले, तब क्या बतलाए ख़ामोशी?दुःख कैसा और कितना है?, तभी तो है यह बहोशी।लूट चुका या लूट लिया है, फ़िर कैसे बोले ख़ामोशी?दान दिया या दान लिया है, फ़िर क्यों इतनी ज़ासूसी?किसने किया और कैसे किया?, कुछ ना बोले खोमोशी।जग ऐसा यह ऐसा ही रहेगा, क्यों लीला इसकी घट-घट वासीभ्रष्ट-भ्रष्ट भ्रष्टाचार देखकर, छाई है लोगों में उदासी।हमने किया या उसने किया?, क्या बोले फ़िर ख़ामोशी?अभियान चला हड़ताल चली, तब तक थी गर्म जोशी।पर हालात ना बदल सके भाई, गुमशुम सी है ख़ामोशी।आम इंसान अब क्या कर बैठे?, बैठ चुकी सबकी ख़ामोशी।आगे क्या होगा क्या नहीं?, क्या कह सकती ख़ामोशी?जग बोले और बड़े हैं बोल, पर हम सबमें है ख़ामोशी।संसार बने संसार चले, यूँ सब लोगों में क्यों ख़ामोशी?चारों तरफ़ ख़ामोशी ही ख़ामोशी है ,कैसी है यह ख़ामोशी? सर्वेश कुमार मारुत
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बहुत खूबसूरत ………….खामोशी के कई मायने होते है.. निर्भर करता है की किस मनोस्थिति क्या है !
धन्यवाद
Bahut achhe sarvesh ji
धन्यवाद
Sundar rachna…
धन्यवाद
khamoshi ki khoob vivechna ki hai apne ……………bdhiya……
धन्यवाद
सुंदर रचना…………
Apka aabhar
Very nice सर्वेश जी…
Apka aabhar