शीर्षक-एक बहन थी मेरीएक बहन थी मेरी,सावली सी सलोनी सीएक प्यारी गुडिया सीथाम मेरी उँगलियाँवो चलती थी आगे बढती थीवो राखी की डोर थीवो मेरे चारो ओर थीकब मेले में उसने मेरा हाथ छोड़ामैं नहीं जानता थाउसने मेरा साथ छोड़ाएक बहन थी मेरीहंसती थी,खिलखिलाती थी मेरे बालो के संग खेला करती थीमेरे संग वो पढ़ा करती थीएक बहन थी मेरीअब राखी का उसे कोई मोल नहींमुझसे उसका कोई मेलजोल नहींअब वो नहींअब मैं भी नहींरिस्तो का क्या हैएक धागे के सहारे जुड़ जाता हैतोड़ दो टूट जाता है—–अभिषेक राजहंस
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Sundar bhaw
Nice 👍
Bht sundar kavita
bahut hi sundar…………………
बहुत सुन्दर…………
bhut achha bhav ……………………….