कोस कर प्रारब्ध के होना कभी हताश मत ।परास्त के आयुध में बस दृढ़-कर्म नहीं होता ।।
धनुर्धर अर्जुन के कौशल से ईर्ष्या मत कर हे कौरव ।ज्ञात हो अभ्यासरत वह गुडाकेश, रातभर नहीं सोता ।बड़प्पन निरन्तर सहने, चलते रहने और मौन में है ।सियार-कुक्कुर के जैसे तो सिंह कभी भी नहीं रोता ।।आकर्षित कर ही लेती है सभी को सदगुणों की सुगंध, वरन ।रातरानी व चन्दन पर कभी लिपटा भुजंग नही होता ।।बृहद आकार देखकर गुब्बारे का, न होना भ्रमित ।उड़ जाता है वो, जिसमे अपना वज़न नहीं होता ।।
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Behtreen …………………….
आपका अभिनन्दन मान्यवर।
हर पंक्ति लाजवाब ज़िन्दगी का फलसफा ब्यान करती है….बेहतरीन कृति…..
उत्साहवर्धन के लिए आपका अभिनन्दन मान्यवर।
Bahut hi sundar….
आपका धन्यवाद अनु जी।
बहुत खूबसूरत हर पंक्तियों की मूल्यांकन सटीक और सोभनीय….
उत्साहवर्धन के लिए आपका अभिनन्दन मान्यवर।
अति उत्तम रचनात्मकता …………..प्रेरणा से परिपूर्ण सुन्दर रचनात्मकता………..काव्य सौंदर्य देखते ही बनता है !!
आपका अभिनन्दन निवातिया जी उत्साहवर्द्धन के लिये।
Very nice
आपका अभिनन्दन मान्यवर।
बहुत ही सुंदर………… लाजवाब………
आपका अभिनन्दन मान्यवर।
बड़प्पन निरन्तर सहने, चलते रहने और मौन में है
Bahut Khoob…..
बहुत सुन्दर कहा आपने, सदगुणों की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है