आज मै पुराने एल्बम के,पन्नो को पलट रही थी जब,मेरी नज़र टिक ही गयी बस,एक पुरानी सी तस्वीर पे|दोस्तों संग बिताए पल, फिर से,आँखों के सामने तैरने, लगे थे,धुंधली सी यादो से ही, फिर से,चमक लौट आयी थी, आँखों में|पहले तो रोज शाम कोहमारा, मिलना होता था,वह खेलना, कूदना, हसना,और रूठना, मनाना, होता था|सब तो पीछे ही रह गया,पता ही नहीं चला कब हम,ज़िन्दगी के हातो, चलते चले गए,और काफी रिश्ते पिछे ही छूट गए|कितना वक़्त बीत गया था,अब हालात, बदल चुके थे,सब अपनी ज़िन्दगी में मशगूल थे,कहाँ मिल पाते है, बचपन के दोस्तों से|पर उनकी यादे दिल में,आज भी जस की तस है,क्योंकि वह रिश्ते सच्चे थे,निस्वार्थ और निर्मल थे|दोस्त तो उसके बाद भी बने,पर बचपन की दोस्ती सी,वह बात, फिर नहीं बनी,उसमे अलग ही कुछ बात थी|तभी तो उन यादो की,आज भी अहमियत है,उनकी स्मृति मात्र से ही,आँखें छलक पड़ती है| अनु महेश्वरीचेन्नई
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Very true……..
Thank You, Shishir ji…
व्यस्त जीवन में उदास मन की सच्ची व्यथा।
Thank You, Nivatiya ji…
very nice anu jee….. yaad hi manushya ko jinda rahane ki prerna deti hai…… bad baki to jindagi hi nirarthak aur udasin hai……
Thank You, Bindeshwar ji…
बहुत खूब अनु जी। इसी भाव से आज मैंने भी 4 पंक्तियां लिखी हैं। यह सिद्ध करता है कि हम सभी के जीवन मे एक खूबसूरत इतिहास होता है जो मन को गुदगुदाता भी है।
Thank You, Vivek ji…
bahut hi sundar
Thank You, Arun ji…
Sahi kaha hai……bahut sunder…..
Thank You, Sharmaji…
बचपन के दिन कुछ ऐसे ही होते हैं अनु जी ,
अति सुन्दर कविता
Thank You, Kiran ji…
बहुत ही खूबसूरत…………..
Thank You, Kajal ji…