- आसमान, जमीन, सितारे, शय्यारे, सूरज, खलासमुन्दर, पहाड़, नदियां, झील, पानी, चाँद, हवा;जो सब ये चीजें आज मौजूद हैं,कभी तो पैदा किए गए होंगेकोई तो होगा जो इन्हें कन्ट्रोल करता होगा!
असंख्य आकाशीय पिंड- औरआकाशीय पिण्डों में, घूमते रहने की प्रवृत्तिअपने अक्ष पर नाचते रहने की प्रक्रियाये कभी तो पैदा किए गए होंगेइनकी अंतिम डोर कहीं तो होगीकोई तो होगा जो इन्हें कन्ट्रोल करता होगा!बादल, बारिश, हरियाली, पेंड़-पौधे,जानवर, मछलियां, चिड़ियां, मधुमक्खियांघोंसले, छत्ते, शहद बनाने के हुनरइनकी पैदाइशें, हरकतें, उपयोगिताएं-इनका कण्ट्रोल कहीं से होता होगा!साग-सब्जियां, जड़ी-बूटियांफल, फूल, मेवे, अनाज़ का ज़खीराइनमें स्वाद, खूबसूरती, महक, शिफातकीट जगत का साम्राज्य, बैक्टीरियाइनका भी कंट्रोलर तो कोई होगा!औरसबसे विचित्र-उत्त्पत्तिमानव की ‘जात’जो है खास पर खासइसको किसने पैदा कर डाला है-वो भी एक कतरे से, जो था नापाक?शायद, इसलिये कि जब अपने वजूद के बारे में सोचेतोकुछ ‘शर्म’ करे, इतराना बंद करे!हर किस्म की मोहब्बतेंसुख-दुःख की अनुभूतिस्वास्थ्य-रोग, जीवन-मरणइनका भी कोई नियंता तो होगा!अब सवाल यह है-इन तमाम, चीजों को बनाने के पीछेराज क्या है? उद्देश्य क्या है?इनको बनाने वाली हस्ती कौन है?अगरकोई हस्ती है, तो वह कितनी, महान होगी!कितनी शक्तिमान, होगी!हर चीज को जानने वाली, सुनने वाली,देखने वाली होगी!अकल्पनीय, अपरिमित होगी!उसका नाम क्या होगा-उसका नाम बाप-दादों से सभी ने सुना होगाउसका नाम किताबों में सभी ने पढ़ा होगा।मुख़्तलिफ़, जुबानों के मुख़्तलिफ़ इलाकों वालेमुख़्तलिफ़ नामों से उस नाम को पुकारते हैंअपनी-अपनी जुबानों में उसका बयान भी करते हैं।एक ने कहा ‘मैं सही तू गलत’उसने कहा ‘तू गलत, मैं सही’वे मूल बात तो भूल गए, औरों को दरकिनार करने लगे।ये नादान हैं जो, ‘नाम’ को ही लेकर लड़ने लगे।वे बेचारेवे बेचारे ही तो हैं, उसके ‘नाम’ परजो नफ़रतें फैलाते हैं, इतनी महान हस्ती के ‘नाम’ परकुछ भी नहीं ‘समझ’ पाते हैं?वे बेचारे, खुद को बहुत बड़ा ज्ञानी समझते हैंबेचारे वे, लड़-झगड़ कर जिंदगी काट ले जाते हैंवे बेचारे, मरते-मरतेअपने, आने वाली औलादों में दुश्मनी के बीजबो जाते हैं।******************************भाग -2’उस महान हस्ती, सर्वशक्तिमान को कैसे अपना बना लिया जाएउसे दूसरे मत वाला न पा जाएअब उसको खुश कैसे किया जाएउसकी पूजा कैसे की जाएपूजा घर कैसे बनाया जाए, कैसे सजाया जाएउसकी इबादत के क्या हों तरीके?मरने के बादकैसे उसकी बनाई हुई जन्नत मुझे ही मिल जाएकहीं दूसरे तरह का ख्याल वाला न पा जाए!’इन बातों को लेकर लोगों को एक दूसरे से दूर किया जाता हैउनको आपस में मिलने-जुलने नहीं दिया जाता हैसमाज को बुरी तरीके से बाँट दिया जाता हैअब दंगे फसाद, लूट-खसोट, खून-ख़राबे कादौर शुरू किया जाता है।ऐसा दौर जो पीढियां दर पीढियां चलता रहता है,इंसानी शक्ल को शैतान के रूप, में ढालता रहता है!सदियों से बहुत से लोग,शेखियां तो बहुत ही बघारते रहे हैं, सच तो यह है-‘उस अज़ीम हस्ती’ को अभी तक पहचान नहीं पाए हैंइसीलिए, तरह-तरह के पाप में मुब्तिला हैं; जकड़े हैंजुदा-जुदा जीते हैं, अब तक वे एक नहीं हो पाए हैं।(शय्यारे= उल्का पिण्ड, खला =अंतरिक्ष, शिफात= रोग-मुक्त करने का गुण, मुख़्तलिफ़= विभिन्न,अज़ीम= अत्यंत महान, मुब्तिला=शामिल)…र.अ. bsnl
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व गुणी-जनों को ‘ईद मुबारक’।
कहते हैं कि ईद के दिन, ईदगाह में, मुस्लिम गुनाहों से इतने साफ-पाक कर दिए जाते हैं, जिस तरह से माँ के पेट से अभी-अभी पैदा हुआ मासूम बच्चा, गुनाहों से पाक होता है।
…र.अ. bsnl
आज इन्सान धर्मों में फँस कर रह गया है , पर इंसानियत से बड़ा धर्म कोई हो नहीं सकता
इंसानियत को ही धर्म बनाओ kiran kapur gulati किरन कपूर गुलाटी 10/09/2015 2 Comments
इंसानियत को ही धर्म बनाओ
रचाया जिसने संसार है सारा
वोः भी सोच सोच के हारा
शायद सबक सीखने को
हर भेद भाव. मिटने को
रची उसने भी नयी. कहानी
जब हद से गुज़र जाती है नादानी
तब हर सू छा जाती है वीरानी
बदलाव सा हम देख रहे हैं
बढ़ते हुए कहीं रुक से गये हैं
जल्द ही.कुछ ऐसा होगा
सोच बदलने जैसा होगा
नफरत की जगह होगा प्यार
न होगा इंसानियत का व्योपार
भुला कर हर भेद भाव को
प्यार की राह पर बढ़ जाएंगे
सबको सबसे होगी हमदर्दी
बैर वैर सब मिट जाएंगे
ईश्वर, ईसा हो यां हो ख़ुदा
वोः ताक़त नहीं किसी से जुदा
हम उसे जिस रूप में देखें
वोः तो है कण कण में बसा
अपने २ धर्मो से उठ कर
इंसानियत को ही धर्म बनाओ
जब हो, इंसान तो
इंसानियत का फ़र्ज़ निभाओ
Sundar rachna…Sabse pahle aapko “Eid Mubarak “…Kiran ji ki baato se puri tarah sahmat Hun…
Behtreen. Nischay hi vo shakti “akalpneey or aprimit” hai. Isliye aapkaa kahnaa poorntayaa uchit hai ki uske naam par ho raha har tarah kaa fasaad gair vaazib hai. Lekin jab tak sabhi dharmo ke thekedaar is mudde par ekmat nahin honge ye jhagde yun hi chalte rahenge. Ek Raquim Ali or Shishir Madhukar ki aawaaz dab kar rah jaayegi. Mazaa to tab ho ki namaaz padhne waalaa mandir me bhi namaaz padh sake or murtipujak masjid me bhi apne saamne apne isht ki tasveer rakh pooja kar sake..
बहुत खूबसूरत विवेचन यक़ीनन समाज में जागरूकता का सदेश देने वाली रचना है । ………इन सब समस्याओ की जड़ और समाधान सब एक ही शब्द में समाहित है उस शब्द का नाम है *जागरूकता*
सामाजिक और धार्मिक विषमताओं का होना जागरूकता की कमी है कुछ चपल प्रवृति के लोगो ने अपने निजी स्वार्थ के कारण अशिक्षा के अभाव में समाज में ऐसा म
अंकुर डाला जो आज वृहद वृक्ष बनाकर जगत में अपनी मजबूत और गहरी जड़े बना चुका है जिसका प्रतिफल इंसानी मानसिकता आज तक उलझी है।
आज समाज में शिक्षा तो बहुत है मगर जागरूकता की आज भी कमी है । इस विकृती से छुटकारा पाने के लिये गहन कार्य की आश्यकता है जिसमें शिक्षा के साथ साथ जागरूकता को प्राथमिकता देने होगा। अपितु इस प्रसंग में सबके अपने अपने मत हो सकते है।
किरण जी, अनु जी
शिशिर व निवातिया जी
आप लोगों को बहुत-बहुत धन्यवाद।
सही समाज के निर्माण में आप लोगों जैसे विचारकों की बहुत अहम् भूमिका रहती है।
Eid Mubarak, again pl.
Eid Mubarak………aapne bahut Sahi bhaav prakat kiye hain….atyant sunder…….
अली जी, सबसे पहले तो आप को हमारी तरफ़ से ईद की मुबारकबाद….. सन् 624 ईस्वी में जंग ए वदर के बाद पहली बार ईद – उल – फ़ीतर पैगम्बर मुहम्मद साहब ने मनाया….
Thanks, Babbu ji & BP Sharma ji.
History:
Eid al-Fitr was originated by the Islamic prophet Muhammad. It is observed on the first of the month of Shawwal at the end of the month of Ramadan, during which Muslims undergo a period of fasting.[7]
According to certain traditions, these festivals were initiated in Medina after the migration of Muhammad from Mecca. Anas reports:
When the Prophet arrived in Madinah, he found people celebrating two specific days in which they used to entertain themselves with recreation and merriment. He asked them about the nature of these festivities at which they replied that these days were occasions of fun and recreation. At this, the Prophet remarked that the Almighty has fixed two days [of festivity] instead of these for you which are better than these: Eid al-Fitr and Eid al-Adha[8]
For Muslims, both the festivals of Eid al-Fitr and Eid al-Adha are occasions for showing gratitude to Allah and remembering Him, as well as giving alms to the poor.
लौकिक व अलौकिक के सम्बन्ध को सहेजने का बहुत सुंदर व सफल प्रयास।
विवेक सिंह जी बहुत-बहुत शुक्रिया।