अनमोल बचपनअकरम चकरम बुम, सुन बच्चों की धुननन्ही सी इक जान के पीछे क्यू पड़े हो तुम -२दिल्ली की दिवार से सट के पानीपूरी खायेंगेअपनी इस दावत में हम तारों को भी बुलाएँगेसूरज को मिर्ची लगेगी, चाँद पड़ा गुमसुमअपनी आँखे फाड़ के अब क्या सोच रहे हो तुमअकरम चकरम बुम………….मोर के रथ पे बैठ सवेरे हम बगिया की ओर चले फूलों की बारात चले और हम बच्चों की शोर चलेहवा के रस्ते हों, ठहाके सस्ते होंबारिशों की बूंदें बजती हो रुन झुन झुनअकरम चकरम बुम…………….दिन में सपने देख सकें और रात से दिल की बात कहेंइक इक पल को छु पायें और आज से कल की बात कहेंकरें मनमानी की, कहानी नानी कीरखेंगे झोली में, सारे चुन चुनअकरम चकरम बुम…………….
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बहुत खूब…………
मेरी रचना “चंचल मन” पढ़ें ऐसे ही विषय पर है.
bahut hi sundr……………
अति सुन्दर बाल कविता …………आपकी रचनात्मकता खूबसूरत है इसलिए सुझाव साझा करना चाहूंगा ,,,,,,,,,,,,अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचे…… कम शब्दों के सही तालमेल से रचना अधिक बेहतर और आकर्षक बन जाती है ……….अन्यथा न ले !
ऐसी ही एक रचना ” हम बच्चे मस्त कलन्दर ” को नजर करे !!
निवातिया जी बहुत बहुत धन्यवाद् आपका !!!
आपके सुझावों से पूर्णतया सहमत हूँ तथा उसे सम्मान के साथ स्वीकार करता हूँ |
पुनः धन्यवाद् |
सुंदर अभिव्यक्ति बाल गीत
बहुत ख़ूबसूरत