उच्चाईयो को जितना भी छू लो,व्यस्तता में खो, अगर नहीं संभाले,तुमने अपने ज़िन्दगी के रिश्तों को,एक अपूरणीय खालीपन जीवन में,हमेशा के लिए रह ही जायेगा तुम्हारे|अपने भी अगर उपेक्षित होते होते,अलग से अपनी खुशिया ढूंढ लेंगे,फिर जीवन के उस पल का सोचों,जब खाली समय होगा शाम को,और तुम कहीं अकेले न रह जाओ ?समय रहते संभाल लो इन रिश्तों को,केवल काम में ही मशगूल तुम न रहो,यह दुनिया तुम्हारे पहले भी चल रही थी,तुम्हारे जाने के बाद भी चलती ही रहेगी,अपने रिश्तों को भी ज़रा मधुर बनालो|अपने व्यस्तता भरे दिनों में भी,तुम अपनों का हाथ थाम कर,दो कदम चल भी लिया करो,वह आँखे कभी शिकायते नहीं करती होगी,पर साथ तुम्हारा पाने को तरसती तो होगी|बैठो कुछ पल अपनों के साथ,छुट्टियां बिताने के बहाने ही सही,जिओ ज़िन्दगी अपनों के साथ,ले लो चैन की सांसे ही,चाहे दो पल ही सही| अनु महेश्वरीचेन्नई
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bhut gajab ………..ekdam sahi bat hai anu ji…………..
Thank You, Madhu ji…
sahi bat kahi aapne
Thank You, Arun ji…
बिलकुल सही कहा आपने……..व्यस्त रहना अच्छा है पर अपने लिए…परिवार के लिए वक़्त निकालना बहुत अहम है…..परिवार में सोहार्दता बनती इसी से है….बेहद खूबसूरत…शिक्षाप्रद………..
Thank You, Sharmaji…
सुंदर पंक्तियों से आपने अपनी रचना को खूबसूरत… बहुत बढ़िया अनु जी…
Thank You, Bindeshwar ji…
बहुत सूंदर……………….
Thank You, Vijay ji…
behtreen rachnaa anu …..
Thank You Shishir ji for reading and liking it…