कुछ भी कहने से क्यों लगने लगा है, डर अब,इतना फ़ासला आ गया, या मन का है, बहम,कभी हम साथ हुआ करते थे हर सोच में, भी,आज, लगती है दूरियां क्यों, ख़यालात में भी,कहाँ से आ, पसर गया सन्नाटा अपने बीच में,हम अब पहले की तरह क्यों नहीं चहक पाते,बदल गयी है तेरी ख्वाहिशें या फिर मेरी राहें?या फिर बदल गया है, सारा ज़माना ही अब?पर कुछ तो है, जो आज भी तो, जोड़े है, मन,तेरी आवाज़ सुनते ही कानों में बजता है संगीत,अब भी है, अपने अंदर जुड़ने की, एक कशिश,काश फिर से तू अपनी हर एक समस्या लेकर,आए पास, पहले की तरह मिलके हल निकाले,और मै भी हर मसला सुलझाने में लूँ तेरी मदद,आओ, तू और मै से, निकले बाहर हम फिर से,और एकबार ‘हम’ बन जाए, हम दोनों फिर से| अनु महेश्वरीचेन्नई
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
Very nice………………….
Thank You, Vijay ji…
बहुत सुन्दर ………..,
Thank you, Meena ji…
bhut khoob anu ji…………………….
Thank You, Madhu ji…
Bahut khoob Anu …….
Thank You, Shishir ji…
bahut achhi soch ko sundar tarike se likha hain aap ne . bahut sundar
Thank You, Arun ji…
बहुत बढ़िया अनु जी..
Thank You, Bindeshwar ji…
बहुत खुबसूरत अनु जी………दुरिया और फासले का मुख्य कारण मै और तू का भ्रम ही है, जहा. हम हो गये वहा अपनत्व स्वय पैदा हो जाता है ।
Thank You, Nivatiya ji…
बहुत ही सटीक…यथार्थ……रिश्ते टूटने की वजह अहम् ही तो है….अपने को छोड़ के दुसरे की चिंता होती तभी हम बनता….रिश्ता भी तभी जुड़ता….लाजवाब रचना आपकी…..सच्चाई के करीब………
Thank You, Sharmaji….