तुम तुम ही हो
तुम ही तुम रहोगी….
क्योंकि हे शक्ति रूपा
तुम ही तुम हो सकती हो।
तुम तुम हो। तुम ही तुम रहोगी।।
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तुम नहीं तो और कौन बन सकता राधा
ईश्वर की इस प्रेम कथा में कभी,
तुम किरकिरी न बनने दी जाओगी।
रुक्मिणी, सत्यभामा भले रानी रहेंगी,
कान्हा संग बस तुम्ही पूजी जाओगी।।
हे सात्विक प्रेम स्वरूपा
तुम नहीं तो और कौन बन सकता है राधा
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तुम नहीं तो और कौन बन सकता सीता
पवित्रता पर समाज एक अंगुली भी न उठाए,
परीक्षा का यह दोष राघव ने स्वयम पर लिया शीश झुकाए।
विस्मय-शोक से चलते हुए जब अग्नि ताप से तपे थे तुम्हारे पांव,
राम के बींधे थे मनोभाव, हृदय पर पडे फफोलों से घाव।।
हे एकपत्नीव्रतधारी संगिनी
तुम नहीं तो और कौन बन सकता है सीता
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तुम नहीं तो और कौन बन सकता मीरा रानी
समर्पित रह सकी दीवानी केवल तुम ही रणछोड़ में,
नही तुम्हे स्वीकार था कम कुछ उस माखनचोर से ।
घर संसार त्याग कर, दृढ़ता का दिया परिचय निरन्तर,
हलाहल को सहर्ष स्पर्श कियेे केवल तुम्हारे ही अधर।।
हे हलाहल पीकर ‘शिव’ बनी कृष्णप्रिया
तुम नही तो और कौन बन सकता है मीरा रानी
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तुम नहीं तो और कौन बन सकता यशोधरा
तुम्हारे ही तो त्याग से गौतम बना करुणा का सागर,
सम्यक विचार प्रसारित हो सका तभी तो विश्व भर।
सहनशीलता ने तुम्हारी ही तो बनाया उसे महान,
सिद्दार्थ से उन्नत कर को तुमने ही उसे बनाया भगवान ।।
हे करुणादात्री
तुम नहीं तो और कौन बन सकता है यशोधरा
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तुम नहीं तो और कौन बन सकता उर्मिला
ऐसे अपने सुख को भी किया परिवार पर न्योछावर,
की पीड़ा को भी पी गयी अपनी बहन की सेवा पर।।
एक भ्रातृभक्त इसीलिए चल सका सीना तान के,
जिसने न दी आने आंच अपने कुल सम्मान पे।।
हे आदर्श पत्नी, भगिनी व देवरानी
तुम नहीं तो और कौन बन सकता है उर्मिला
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तुम नहीं तो और कौन बन सकता गाँधारी
नहीं थी लाचारी जिसको चक्षु पट्टिका स्वीकारने की,
बस पति की सम्वेदना का अनुभव करना थी चाहती।
पट्टिका से अंधकार नहीं, कठोर तुमने तप चुना,
कालांतर में जिससे तुम्हारा अपना पुत्र वज्र बना।।
हे मति स्वरूपा समर्पित पत्नी व माता का हस्ताक्षर,
तुम नहीं तो और कौन बन सकता है गाँधारी
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हे राधा, सीता, मीरा, उर्मिला, तुम सभी ने तब भी तो किया था स्वयंवर,
यशोधरा तो गौतम की थी पूर्व जन्म की संगिनी, मति जन्मी गांधारी बनकर।
हे राधा, सीता, मीरा, गांधारी, यशोधरा, उर्मिला……तुम सभी ने ही सम्हाला है मानव के चरित्र को।
सबको अपने आत्मिक स्पर्श से उद्दात बनाया,
रंग भरा और पूर्ण किया मानवता के चित्र को।।
परिस्थिति में आवश्यक था जो, कर दिखाया,
कर्तव्य निर्वहन क्या होता है, बतलाया।।
तुम न होती कोई पुष्प पल्लवित होता नहीं,
मत समझो तुम्हारी पीड़ा पर पुरुष रोता नही।।
अत: ….. तुम ही तुम रहोगी….
क्योंकि हे शक्ति रूपा
तुम ही तुम हो सकती हो।
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Very nice………………..
धन्यवाद मान्यवर।
बहुत सुन्दर ………………,
आपका धन्यवाद।
Kya shabdo ka haar baandha hai ..
ek stree ka parichay swayam us se karwaya hai., maano usey aaj sahi darpan dikhaya hai..
मुझे ऐसा नही लगा था। पर आपसे ऐसा जानकर बहुत अच्छा लग रहा है। सचमुच।
सांसारिक जीवन में नारी महत्व पर सुंदर अभिव्यक्ति !!
आपका धन्यवाद मान्यवर।
Boht ache…Dil ko chu lene vali kavita..!! 🙂
आपका धन्यवाद मान्यवर।
Satya darpan dkha hai tumne stree ke her roop ko Pooja hai tumne abhivyakti ko apki Naman Kiya hai humne
आपका अभिनन्दन मनोज भाई।
Wah….dil khush ho gya…bahut sunder kavita…👍👍👍👍
आपका अभिनन्दन मोनिया जी।
विवेक जी अत्यन्त ही उच्च कोटि की रचना लिखी है आपने. इसी टेस्ट के कुछ मेरे मूक्तक शायद आपको भी पसंद आएं जिन्हें मैं आपको भेजना चाहूंगा.प्रकृति बिना पुरुष कितना अधूरा है आपकी इस रचना में अंतर्निहित है. अगर नारी अपने इस रूप को पहचान ले तो पुरुष को निश्चित ही उच्च स्थान प्राप्त होगा. इसी के बल पर तो सावित्री ने मौत को भी हरा दिया. राजा की बेटी और एक आम व्यक्ति के प्रति ऐसा समर्पण.
आपकी प्रोत्साहक प्रतिक्रिया का हार्दिक अभिनन्दन। मैं आपके विचार से पूर्णतया सहमत हूँ।
आपके मुक्तक मैं अवश्य पढ़ना चाहूंगा। स्वागत है।
Ati sundar..
shabdon ka chayan atulniye…
धन्यवाद भ्राता।
gajab
धन्यवाद} मान्यवर
नारी जगत कि पूर्ण परिधि के परिछेद पर आपने जो प्रकाश डाला है वह काबिले तारीफ है. उसके केंद्रीय ध्रुबिकरण पर आपने जो अपने विचार प्रगट किया वह आज के समाज की आईना है… बहुत सुंदर….
आपकी प्रोत्साहक विवेचना के लिए धन्यवाद मान्यवर।
laajwaab…………
धन्यवाद} मान्यवर
bhut hi khoobsurat rachana apki vivek ji……
आपका धन्यवाद
ख़ूबसूरत रचना ,,,,,,,,,,,
आपका अभिनन्दन किरण जी।