प्रेम मंदिर
मैं प्रेम पुजारी दिल के मंदिर का सिर्फ तेरे ही गुनगान मैं गाऊँपत्थर की मूरत, मूरत में सूरत, सूरत पे तेरी मर मिट जाऊंमैं प्रेम पुष्प के रस को लेकर तेरे तन को स्नान कराऊँतुम प्रिय प्राण को पाकर के अपने मन में अभिमान जगाऊँमैं प्रेमाग्नि की लौ लेकर दिन रात मैं तेरी आरती करूँअद्वितीय तेरी छवि निहारू और बार बार नैनों में भरूँमैं अकिंचन कुछ न मुझ पर किसका मैं तेरा भोग लगाऊँसब कुछ समर्पण है तुझको किस भाँति का मैं जोग गाऊँनैनो से नीर निकलता है कैसे सूखी मैं सेज बिछाऊँतू मेरा ही बनकर रह जाए कैसी तुझको मैं लोरी गाऊँसब प्रकार सेवा में करूँ हर भांति मैं तुझे मनाऊँऔर नही कुछ चाहता बस तेरा ही मैं दास कहाऊँकवि – मनुराज वार्ष्णेय
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Prem ke devta ko prem pujari ka samarpan
धन्यवाद रामगोपालजी ……
sundar bhaav……..rachna ant mein aate aate….kuch ulajh si gayee lagti……..
धन्यवाद बाबू cm जी
कृपया दोबारा ध्यान दीजिए आखिर में दो पंक्तियाँ बड़ा दी गयी है
bahut sunder aakriti aap ne apni rachna me darshai ek prem bhakti…. sunder…
धन्यवाद बिंदेश्वर जी
ह्रदय के खूबसूरत भाव ………अति सुंदर ………..अंत और बेहतर हो सकता था !!
धन्यवाद निवातिया जी …..
कृपया दोबारा ध्यान दीजिए आखिर में दो पंक्तियाँ बड़ा दी गयी है
अति सुन्दर
धन्यवाद सर्वेश जी ….
सुंदर…………..
धन्यवाद काजल जी …..
bhut khoobsurat bhut gajab
……….
धन्यवाद मधु जी ……
bahut sundar
धन्यवाद अरुण जी …….