तू धीर, वीर ,गंभीर सदाजीवन को उच्च जिया है रे,तु दुःखियों को सींचित् कर श्रुति स्नेह सेकैसा ,ह्रदय रक्षण किया है रे !तु भाग्य विधाता से हरदमउन्नत ,मधुर विचार पाया है रे,तु वीरों के अन्तःस्थल को,प्रफुल्लित कर प्यार भरा है रे !तु वंचितों,पददलितों के हित,सदा कष्टों का भार ढहा है रे,तु स्वाभिमानी,मातृभूमी हित,गर्दन पर तलवार सहा है रे !तु पराधिनता में जगत्-जननी को,अहा! कैसा धार दिया है रे;लाखों मस्तक कर अर्पित चरणों में,अद्भुद् श्रृंगार किया है रे !अद्भुद् श्रृंगार किया है रे !अखंड भारत अमर रहे !© कवि आलोक पाण्डेय (वाराणसी)
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Alok 13-14 lines me mujhe paraadhin ajeeb lag raha hai. Ya jo aap kahnaa chaah rahe ho sahi roop me nahi aa paayaa hai. Vichaar karna.
सुन्दर रचना
bahut sundar…………..
Very nice ………………,
Bahut khub……………………….
बहुत खूबसूरत ……………..!!