.कौन हो तुम मुझपे सवाल उठाने वाले?कौन हो तुम मुझे बेशरम बुलाने वाले?जन्म दिया है क्या तुमने मुझे??नहीं!पर हाँ…शायद तुम वो हो जिसने मुझे दुनिया में रहने का सलीका बताया है और बता रहे हो.जब तेरह वर्ष की आयु में मेरे जननांग से रक्त की वो बुँदे गिरी तोह तुमने उसे मेरे स्त्री होने का प्रमाण बतायाऔर फिर उसे ही घृणा की नज़र से देखने लगेतुमने मुझे बताया की वो पाँच दिन मैं अशुद्ध हूँतुमने मुझे मंदिर के अन्दर प्रवेश करने की इज़ाज़त ना दी.तुमने मुझे बताया की एक स्त्री का कद पुरुष से छोटा होता हैपर मैंने तोह अपने से छोटे कद के पुरुष देखे हैंतुमने मुझे बताया की मेरे जीवन का लक्ष्य अपने संगी(पति) को खुश रखना हैपर क्या तुमने उसे अपनी संगिनी(पत्नी) को खुश रखने की बात नहीं बतायी?.तुमने मेरे शरीर,मेरे रूप से मुझे परखा और फिर तुमने उस शरीर को अपनी वासना का केंद्र बनायापर तुमने मुझे अपनी इछाओं को दबाने को बोला.तुमने मेरी काबिलियत न दखीदेखा तोह बस ये की मैं एक स्त्री हूँतुमने मुझे कमज़ोर समझ लियातुमने ये तय कर लिया की मुझे जीने के लिए एक पुरुष की आवश्यकता हैपर क्या तुमने मुझसे ये पूछानहीं….!.पर ये मेरा जीवन हैऔर मैं अपने अस्तित्व की रचना खुद करूँगीमैं अपने मासिक धर्म की बातें खुल कर सब के सामने करूँगीऔर मैं दीप भी जलाऊँगीअगर तुम्हें ऐतराज़ है तोह रख लो अपने दीपों,अपने खुदा को मुझसे दूरमैं हर वो चीज़ पर सवाल करूँगी जो मुझे गलत प्रतीत होंगीअगर तुम्हें ये बेशर्मी लगती हैतोह हाँ!हूँ मैं बेशरम…..
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आपने एक ऐसा सवाल उठाया है जो बहुतों को नागवारा होगा….भगवान् ने किसी में कोई भेद नहीं किया है….हाँ कर्त्तव्य निर्धारण सब के अपने हैं….जो काल और पातर्ता से बदलते हैं…. धरती और स्त्री को बराबर का दर्जा दिया गया है….और मेरा अपना मानना है की धरती का दर्जा सब से ऊंचा है…आसमान से भी….क्यूँकी वास्तविकता में आसमान जिसे कहते है ही नहीं वो खालीपन है…पर धरती सृष्टि की जननी है…. अशुद्ध समझना न समझना व्यक्तिगत कारण हो सकता है…कुदरत ने नहीं ऐसा कहा है… और यह कुदरत की सरंचना का रूप है….सो अशुद्ध कैसे हो सकता…..आप की हिम्मत को सलाम करता हूँ…..जय हो….
आपको जो चीजें गलत लगें वही गलत होंगी यह सोच उचित नहीं है. गलत और सही का मूल्याङ्कन व्यक्ति के सोच की परिपक्वता पर निर्भर करता है. अगर हमारी सोच सही है तो हम सही दृश्टिकोण रखते हैं और अगर हमारी सोच गलत है तो हमे सही चीजें भी गलत नजर आती हैं. स्त्री पर किसी भी प्रकार की बंदिश का कारन पुरुष नहीं है बल्कि अपरिपक्व और अज्ञानता से घिरा हुआ पुरुष होता है. एक परिपक्व और ज्ञानी पुरुष स्त्री पर यूँही अंकुश नहीं लगता वाजिब वजह भी होती है और वक़्त पर उसे पर्याप्त सम्मान भी देता है.
सुन्दर भाव
Aapne jo kuchh bhi likha hai ….. ek tarkpurna par parde ki baat hai……… dharma se joda jai to ushke kuchh niyam hain jish par pura samaj chalta hai……Bishesh main aur jyada nahi kahna chahata……… yah aap ki soch aur samajh ki baat hai…… par karna wahi achchha hota hai jo sabko achchha lage…….
dharmik mamle sanvednshil hote hai , hme gaer jruri virodh nhi karna chahiye kyoki bhuto ke vaigyanik vyakhya ho chuke hai unmen ye mamla bhi hai. bebak lekhni ke liye bdhai.
आपने बहुत ही सवेदनशील और गंभीर विषय पर अपनी अभिव्यक्ति पेश की है !
सामाजिक संरचना आदिकाल से पुरुष प्रधान रही है, जिसे धर्म, परम्परा और सभ्यता के रूप में हम अपनाते आय है !………. उक्त समय में क्या परिस्थितयां और वस्तु स्थिति रही होगी इसका कोई अनुमान नहीं लगया जा सकता ………..अत: समय और प्रकृति की मांग के अनुसार परिवर्तन होते रहे है ………इसलिए इसे विवाद का विषय न बनाकर वर्तमान परिपेक्ष्य में लेकर समानता के भाव के साथ सकारात्म दृष्टिकोण अपनाना चाहिए !
bebak likhne ke liye badhai . par dulhan agar parda karti hain to uska man aur badh hi jata hain ghatta nahi . isliye maryada achhi hi cheej hain isme rahana hi achha hota hain