तिनकों से बने सपनेतिनकों से बने सपने तो ,हवा के हलके झोके से बिखर जाते हैं,आंधी तो आती है आशियाने उजाड़ने ,सर उठाकर खड़े पेड़ों को उखाड़ने ,जो जीवन भर की मेहनत से बनते हैं,जो वर्षों में सर उठाकर खड़े होते हैं ,इसीलिये हम रेत के महल नहीं बनाते ,तिनकों से सपने नहीं बुनते,खुली आँखों से,जीवन की मुश्किलों को,संघर्षों से गूंथते हैं,अरुण कान्त शुक्ला6/6/2017
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Bahut khoob. Jeevan me sangharsh kee mehtta ko rekhankit karti achchi rachnaa…..
बहुत ही बेहतरीन……… बहुत दूर की बात समझायी आपने…………….. शुक्ला जी…..
लाजवाब…………यथार्थ के धरातल पे….सत्य को उजागर करती की बिना श्रम के मेहनत के हासिल कर भी लो कुछ तो स्थायी नहीं होता….और उद्यम करना हमारा लक्ष्य होना चाहये….तभी इमारत बनती है….और रेत् की नहीं बनती वो….
bahut badhiya
मानव मूल्यों के यथार्थ का खूबसूरत चित्रण ……….अति सुन्दर !
hakikat byan karti rachana………………………..
VERY NICE THOUGHT……
Bahut khub……………………..
सभी मित्रों को ह्रदय से धन्यवाद ..