आप आए मुक्कदर में हमारे ये खुदा की कुदरत है !कभी हम आपको, कभी अपने आप को देखते हैं !और शुक्रिया करते हैं उस खुदा का जिसकी आप रहमत हैं !!कर रहे थे इक बूँद रहमत का इंतज़ार सदिओं सेऔर मिल गया है अब तो समंदर हमेंशुक्रगुजार हैं उस खुदा का हम जिसकी आप रहमत हैं!!बेशकीमत दुआओं और फरियादों का असर हो तुमना जाने कितनी बार उठे थे हाथ तुम्हे मांग ने के लिए , उसकी बारगाह मेंतब कंही जा कर खिला हैं ये फूल मेरे मुक्कदर मेंकर रहे हैं तेरी सलामती की दुआ ऐ मेरे दोस्त उस रब सेबनकर रहमत अब यूँ ही अब बरसना तुमसींच देना मन की इस बंजर जमीं को अपने आगोश में लेकरमुद्दतो की आरज़ू हो तुम, तरसे हैं ज़माने से तुम्हारे लिएमिला हैं बो सकूँ मन को तुम्हे पाकर , कर नहीं पा रहे हैं बयां इन चंद लफ्जो में !!बस खुश किस्मत समझते हैं हम तुम्हे पाकरकी कभी हम आपको, कभी अपने आपको देखते हैंकुछ यूँ मशगूल हो गए हैं तेरे आने से ज़िंदगीकी अब सब कुछ छोड़ कर बस तुझे ही देखतें हैं — जिंदगीबस तुझे ही सोचते हैं, तुझे और फिर अपने आप को देखतें हैं !!! By Anderyas
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Dear Friends
Please read this poem and comment. This poem is about a person who is very dear to me and entered in my life recently.
अति सुन्दर भाव…………
प्रेम की अनुभूति को शब्दों में बांधने का अच्छा प्रयास !!
बहुत ही खूबसूरत…………
पर कुछ पंक्तियों में आपने
” आप” का उपयोग किया है और कुछ पंक्तियों में ” तुम” ऐसा क्यों………
Bahut Khoob
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ………….,