मेरी ही कविताओं ने आज खिलाफत छेड़ दीमेरे ही सामने खड़ी हो गईं तन कर,सवाल करती हैंपूछती हैं वो अनुभव किसका थाजिसमें तुमने हमें डुबोया,पूछती हैं मेरी ही कविताएंकि वो तर्जबा किसका था जिसे तुमने मुझमें उतारा।मेरी ही कविताएं आज खिलाफ में खड़ी हैं-कहती हैं वो हवाएं,वो तंज़ करती बातेंकहां से लाए थेकहां से लाए थेवे एहसासातजिसमें सिसकियां थीं,वो तडपन थी,वो किसका था।मेरी ही कविताएं आज खड़ी हैं-मेरे ही बरक्ससवाल करती हैंकि वो घटनाएं किसकी थींजिसे तुमने अपने नाम कर लिया,वो बातें किसकी थींजिसमें हमें डूबोया,बता तो ज़रावो तोहमत किसकी थीजो हम पर मढ़ा।मेरी ही खिलाफ़त पर उतारूकविताएंसाक्ष्य मांगती हैंकि वो किनकी हैंजो लिखे हैंख़ाली पन्नों परजिनपर आज सवाल उठते हैं।
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Aatm dwand ko achche shabd die hain aapne.
BAHUT SUNDER TAJARBA …..KAUSHLENDRA JEE,…… BAHUT KHUB…..
बहुत ही खूबसूरत……….
खूबसूरत आत्मवलोकन ……………..एक कवी का सबसे सकारात्मक पहलू यही होना चाहिये ……….!!
Waah…..kya khoob antarman Ko ukera hai….
bhut hi sundar rachana apki………..
behad khoobsurat kalpana kaushal ji………….
AAp sabhi dudhi mitron ka shukriyaa. Aapne apne yahsas aur pyaar zaahir kiya.
सुन्दर अभिव्यक्ति
Shukriya lalit bhai aapke nakshe kadam par chl raha hun