क्या करूँ अपनी हालत का कसूर इस दिल का है सारा मुझे कैदी बनाने का हुनर तो तिल का है सारा मैं तो नदिया का पानी हूँ मचलना मेरी फितरत है मुझे बाहों में भरने का शगल साहिल का है सारा तेरी ज़ुल्फ़ों के लहराने पे आशिक आह भरते हैं मगर उनको उड़ाने का करम अनिल का है सारा रास्ते टेड़े मेड़े हैं चोट चलने से लगती है दोष लेकिन मेरे यारों हसीं मंजिल का है सारा ज़फ़ा की नौबतें यूँ हर तरफ बिखरी नहीं होतीं शिशिर तूफां उठाने का काम संगदिल का है सारा शिशिर मधुकर
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Shishir sahab wakai me aapki antim sher ka mukhda k koi jabab nahi. bahut achhi samajh ke sath likhi gai sher bahut umda hai……
Hraday se shukriya Bindu ji …….
बहुत खूबसूरत भाव शिशिर जी …………..बेहतरीन रचनात्मकता !!
Tahe dil se shukriya Nivatiya ji ……
Bahut hi sundar…Shishir ji…
Bahut bahut shukriya Anu ………
बहुत ही बेहतरीन रचना मधुकर जी………..
Tahe dil se shukriya Kajal…….
बहुत ही खूबसूरत रचना
Dhanyavaad Manoj………
sundar
Dhanyavaad Aun……..
बहुत ख़ूब !श्रीमान जी
Dhanyavaad Sarvesh…………..
behad umda……………….
Tahe dil se shukriyaa Babbu Ji ……..
bahut sunder………………………….
Shukriya Vijay ……………