एक सजामन में छाया खुमार सीअपनी क़िस्मत तो बे-वफ़ा निकलीहर दिन तो था गमो का सायाहर शाम एक सजा निकली,,,,,,अभी तो वफ़ा के गुलसन से आयाइन फूलों के रंगों को साथ लायाअभी तो खुशियों के लिए दिल से दुआ निकलीऔर जिंदगी ही बे-वफ़ा निकली,,,,,,,न काम आई कोई दवान काम आई कोई दुआभटक रहा था बे-वज़हख़ुशी के सदके को छुपाताचाहा गमों को सदा,,,,,,,,,,,आँखों में जो भी था छुपा पायादिल के गमों को ना छुपा पायादिल के तले भटकता रहा ख़ुशी के लिएपर जिंदगी हि बददुआ निकलीहर दिन तो था गमों से यारानाहर शाम एक सजा निकली,,,,,,,!!!
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Good expression of pain…..
Thanks.. ..
बहुत खूबसूरत भाव जुबेर …………….अति सुन्दर …………..!!
सकारात्मक भाव से अपनत्व के लिए सुझाव देना चाहता हूँ की रचना की तारम्यता को बढ़ाने के लिए अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचे और भाषा सम्बन्धी उच्चारण में लिंग भेद पर ध्यान दे जैसे :
मन में छाया खुमार सा
अपनी क़िस्मत बे-वफ़ा निकली
हर दिन था गमो का साया
हर शाम एक सजा निकली,,,,,,!!
Ji…..
Bahut achha sandesh niwatia jee ke dwara …….. sunder ……. par dhyan dene yogya baat…….
Ji….
बहुत सुन्दर………………………
Thanks….
अति सुन्दर
Thanks…….