धूल से धुमिल है पथ,फिर भी लेता हूँ शपथ,ना रुकूंगा, ना थकूँगा,बस चलता ही रहूँगा ||ना आँधियों के जोर से,ना बिजलियोँ के शोर से,ना डरूँगा, ना रुकूंगा,बस चलता ही रहूँगा ||कितना ऊँचा हो मगर,चाहे पर्वतों पर हो डगर,ना गिरूंगा, ना रुकूंगा,बस चलता ही रहूँगा ||अब गहराइयों की बात है,दरिया की, क्या अवकात है,ना डूबूँगा, ना रुकूंगा,बस चलता ही रहूँगा ||लक्ष्य को है भेदना,बस यही एक लक्ष्य है,अभेद्य है तो क्या हुआ,मैं भेद कर ही रहूँगा ||धूल से धुमिल है पथ,फिर भी लेता हूँ शपथ,ना रुकूंगा, ना थकूँगा,बस चलता ही रहूँगा ||
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दृढ़ आत्मविश्वाश से संचित अच्छी रचनात्मकता !
धन्यवाद डी. के. निवातिया जी, मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है, की मेरी पंक्तियाँ आप को पसंद आई |
ARVIND JEE BAHUT ACHHI RACHNA …….
शर्मा जी आपका बहुत बहुत आभार, धन्यवाद ह्रदय से |
Bahut sundar
मनोज जी मुझे बहुत हर्ष हो रहा है, की मेरी कविता आपके ह्रदय को छू पाई |
अति सुंदर……….. आत्मविश्वास जगाती.हुई रचना…..
काजल जी आपका बहुत शुक्रिया, हौंसला अफजाही के लिए | आभार प्रकट करता हूँ मैं ह्रदय से |
Bahut sunder………………………..
विजय कुमार जी धन्यवाद और मैं बहुत भाव विभोर हूँ की आपको मेरी पंक्तियाँ पसंद आई |