(हाल ही में घटी एक घटना पर आधारित)दो टुकड़ो में पड़ी थी बेटीतड़प तड़पकर माँ को पुकारेमाँ मै तुझसे प्यार हु करतीजैसे हो माँ मुझे बचालेमाँ जो आई देख वो मंजरहोश तो जैसे उसने गवायेंनम आँखोंसे कोशिश माँ कीबेटी को वो गले लगायेटुकडे वो माँ कैसे समेटेमदत मांगते वो गिड़गिड़ायेंलोग खड़े थे जैसे तमाशाकोई मदत को आगे न आयेबनी नपुंसक विचारधारावीडियो का था एक नजारामानवता का नाम न लेनामासूम को ना मिला सहाराआधा घंटा तड़प तड़पकरबेटी ने जो प्राण है छोड़ेदेख तमाशा इस जीवन कामाँ ने अपने हात है जोड़ेदेख तमाशा इस जीवन कामाँ ने अपने हात है जोड़े—————//**-शशिकांत शांडिले, नागपुरभ्रमणध्वनी – ९९७५९९५४५०
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bhut hi marmik prsang…………………karunik…..
बहोत धन्यवाद आपका मधुजी ….
माँ और बेटी की एक तड़प जो ब्यान करती है एक जुदाई
बहोत धन्यवाद आपका शर्माजी …………
maarmik or dard bhari ……
बहोत धन्यवाद आपका शिशिरजी…
दर्द भरी दास्तां……….. शब्द नहीं कुछ कहने के लिए…..
बहोत धन्यवाद आपका काजलजी ………….
Dard bhari dastan….
बहोत धन्यवाद आपका माहेश्वरीजी…
उत्कट और संताप से परिपूर्ण …….अच्छी रचनात्मकता !!
हृदयी धन्यवाद आपका निवातियाजी ..
dard bhari rachna….
हृदयी धन्यवाद आपका हुसैनजी …………