मन अशांतअशांत मन मेंप्रसांत महासागर।शांत मन में समुद्र का जमावड़ासात समंदरएक विशालतम भुगोल के परिदृश्यजल का महाप्रलयंकारी स्वरूप।मन की परिभाषाउसके परिच्छेदउसके बहुत तेज गतिइसके मति से मिलते जुलते समंदर।मन की गहराईयॉक्या कम है समंदर सेकल्पनाये भी ऐसीपलक झपकते लोक परलोकसबकी खबर।जिसने देखा तक नहींसब कुछ हाजिर हैबिलकुल सामने नजर केजादुई ताकत की तरहहजारों जन्मों के ख्यालभरे पड़े है मन के दिमाग में।बनाई है जिसने धरती-आकाशजल-अग्नि और वहती हुई हवाएक परिधिनुमा ब्राहाण्ड।उसके गोद में घूमतेसूर्य-तारे-चादॅ जैसे कई औरआदि से अंतसब जुडें है चैन की तरहन टूटने वाला रात और दिनकभी खत्म न होने वालाएक शिलशिला।एक कडवा अनूठा सचआत्माईश्वर और उसके पॉच तत्वसभी अमर है।समंदर की तरहउसके कुण्डली में अमृतउसके गहराईयों में फैला विषरत्नों के भंडार से भरा गोदसंसार में सब कुछ है।लुभाने और पाने के लिएजी भरकर खाने के लिएदेखने और दिखाने के लिए।हमारा कुछ नहींकुछ भी नहींकर्म करोअपने कर्मो से प्रधान बनोसत्यमेव जयते ।। बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा – बिन्दु
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इस गहराई को जो नाप लेता वो अनंत को पा लेता है …………गहराई से परिपूर्ण खूबसूरत रचनात्मकता ………….अति सुन्दर बिंदु जी.
VERY VERY THANKS FOR YOUR COMMENTS.
Bahut sundar….Bindeshwar ji…
Anu jee bahut bahut sukriya…..
bhut badhiya bindeswr ji……gajab…….
Madhu jee aap ki sarahana sar ankho par…..
very spritual………………….
very very thanks……..
बहुत ही खूबसूरत……. सुंदर रचनात्मकता……..
very nice
Thanks for your comments Manoj jee………
Kajal jee aap ki pratikriya ke liye bahut bahut aabhar……