मैं पवन होता तो, नदियों आकाश-पाताल तक उड़ता।तरु के पातों को स्पर्शित कर, मैं जन-जन को हर्षित करता।पहुँच यदि तरिणी तक, तो मृदु तरंगों के सह बहता।ले थोड़ी सी ठंडाई तब, उसको लेकर मैं बढ़ता-बढ़ता।मलानतायें क्यों हैं जन में?, मैं उनको कुछ-कुछ हर लेता।तृप्त हो सके शायद मुझसे, मैं करता-मैं करता बस मैं करता।टूट चुके हैं नभचर ऐसे, प्राणों-प्राणों से ही डरता-डरता।व्याकुल विचलित हुए ये कैसे?, तब मैं इसको क्यों सहता?दबे कदम से-दबे कदम से, कहाँ चला मुझे नहीं पता?मिले कदम सागर से ऐसे, जैसे नभ बादल चलता-चलता।मिलकर चलें तब साथ-साथ, खग भी तो अब अंगड़ाता।चले-चले वे-चले-चले वे, मनों को तब ही हर्षाता।घूमा था मैं खूब गगन तक, पर चलते-चलते गया मैं थक।दूर अम्बर तक दृष्टि डालकर, डालूँ मैं डेरा जहाँ मैं रुकता।मैं था मैं अपनी लत में, नहीं दिखी थी धूल धूलता।घूमा वबंडर तब यों ऐसे, मानों आकाश धरती पर गया रखता।नींद खुली तब मैंने देखा, पर पगों में थी डगमगता।अब पड़ा हुआ पड़ा मैं धीमा, तब ही धीमा हुआ वबंडरता।विचलित लोग धूलित आँखों से, दुःख उनका मैं क्यों देख पाता?शांत हुआ कुछ शांत हुआ मैं, तब कुछ तो कुछ ही चहकाता।कुछ डर के डर- डर के मैं, भाग चला-भाग चला मैं कहाँ पता? सर्वेश कुमार मारुत
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sundar………tankan galtiyan adchan karti rachna mein…………….
सुझाव के लिए दिल से धन्यवाद ,श्रीमानजी , आप हमारी गलतियों को बताते रहें ताकि मैं गलतियों में सुधार कर सकूँ , एक बार पुनः धन्यवाद
very nice ………..pls. consider BABBU Ji advise………………!
धन्यवाद श्रीमान जी , ज़रूर करेंगे
सुंदर रचना…….
धन्यवाद ! अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए , काज़ल सोनी जी
सोच लम्बी है बने रहिए बहुत खूब
प्रोत्साहन के लिए आपका का बहुत अभिनन्दन, श्रीमान जी
very nice
Thank you Manoj…….
Sorry Sarvesh I posted a wrong comment here. Please delete it from your end.
धन्यवाद
Beech beech me rachnaa “agar main pawan hota” bhaav se bhatak gai hai sarvesh Gaur se dekho. Un sthaanon par aap present tense me aa gae ho.