आजादीजब हम थे सोएतब कोई ख़्वाब था आयाकिसी अपने ने हीखून था बहाया,,,,,,लेकर निशानी हम भूल गएउनकी कुर्बानीकिसी अपनो ने हीआज़ाद हिन्द का मसाल था जलाया,,,,,यहाँ कभी था शोर शराबाखुब चली थी गोलीहमें तो दे दी आजादीख़ुद तो खेला खून की होली,,,,,,गुजरती हवाओं ने भी कहायही हैं सुरवीरों की नगरीउन्होंने भी ऐसा फरमान कियाजाते-जाते तिरंगे को सलाम किया,,,,,,सोई थी ये नगरीकिसी एक ने जगाया थाफिर आजादी का ये दीपसबों ने मिलकर जलाया था,,,,,,~~~~मु.जुबेर हुसैन9709987920
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बहुत खूबसूरत …………..ये स्वप्न पूर्व की हकीकत है …………अच्छी सोच !
सुन्दर भावपूर्ण रचना…
thanks डी. के.सर
thanks ,,,,, Sir
बहुत ही सुंदर रचना……….
thanks…..
सुन्दर भावों में रचित रचना.
thanks Sir……….
bhut sundar bhav purn rachana………
thanks…
Very nice……….
thanks……………………
Bahut Sundar…..
thanks…………
यह कविता,,, मैं एक रोज एकेले बैठा हुआ था। कि अचानक मै अपने देश और आजादी की सपनो में खो गया,,,ऐसा लग रहा था कि ये सब मेरे सामने हो रहा हो,,,,,,
तभी मेरे मन मे कविता याद आया और मन के भावो को एक कविता का रूप दिया ^^आजादी^^ ।