तूने बनाई, भगवन इतनी सुन्दर दुनिया,रंग बिरंगे फूलों से महकाई तूने वादियाँ|कहीं पे है ऊँचे पर्वत,तो कहीं नीली झील,कहीं सागर का पानी गहरा,कहीं नदियों की अविरल बहती धारा|यहाँ कल कल करते बहते झरने भी,सुबह चमकती सूरज की किरणे भी|कहीं पे पत्थर कही पे कंकर,कहीं पे है समतल जमीं,और कहीं धूल सोने सी|दिखती नभ में, कभी इंद्रधनुष यहाँ,झिलमिल करते तारे, रात में जहाँ,शीतलता का प्रतीक, चाँद भी है वहाँभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों भी है यहाँ|फिर तूने, क्यों न अच्छा सा,माली भी एक बनाया?जो सम्भाल कर रखता इस धरा को,क्यों, अमानुष बना दिया, कुछ लोगो को?जो केवल अपने फ़ायदे की है सोचते,बस पैसे के पीछे यहाँ लोग है भागते,मानवता को रोज ही तार तार करते|आज सराफत की कीमत कहाँ,झूठ और फ़रेब खूब चलते यहाँ|कुछ भेड़िये हर गली में मिल ही जाते,मौका मिले, अपनों को भी नोच खाते|ख़तरा आतंकवाद से भी है जहाँ,अंदर घर के भी है, दुश्मन यहाँ|अब दिखा तू, कोई चमत्कार,सुदर्शन चक्र, अपना चला कर|बदलदे सबकी भ्रष्ट मती,भर, सब के अंदर सुबुद्धि,बचा ले तू, अपनी सृष्टि| अनु महेश्वरीचेन्नई
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अति सुन्दर भावों से परिपूर्ण रचना अनु जी .
Thank you , Meena ji…
बढ़िया भावभीनी रचना अनु जी
Thank you, Bindeshwar ji…
बहुत ही अच्छे भाव हैं. बहुत सुन्दर.
Thank You, Vijay ji…
खूबसूरत प्रेरक रचना ………………!!
Thank You, Nivatiya ji…
बहुत ही सुंदर……. सुंदर भाव आपके………
Thank You, Kajal ji…
बेहद सुन्दर और समसामयिक अनु….
Thank You, Shishir ji…
bhut gajab bhav purn rachana anu ji………..
Thank You, Madhu ji…
बहुत सुन्दर.
Thank You, Manoj ji…
Bahut badhiya……….
Thank You, Sharmaji..