एक मुद्दत हुई तुमसे आँखें मिलाये हुए….सदियां हो गयी ज़िन्दगी को मुस्कुराये हुए…बारिश अबकी बार होनी ही चाहिए….अरसा हुआ आँखों में आंसू लहराए हुए…दिल है कि भूल गया धड़कन लेकिन…याद हम हैं उनको तभी हैं वो दूरी बनाये हुए….हवाएं चली तेज फिर थक के रह गयी…सुकून से मैं भी था सब अपना लुटाये हुए…बहुत आये समझाने यूं ज़ख़्मी रूह को मेरी…बेताब हों बिन किसी को चोट पहुंचाए हुए…आखिर करता क्या उठा ज़ोर से दिल के आस पास…मुद्दत जो हो गयी थी ‘चन्दर’ दर्द को सहलाये हुए….\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
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Bahut hi sundar….
तहदिल आभार आपका…………Anuji…..
हर पंक्ति एक से एक सुन्दर ……. बेहद उम्दा भाव ………,अत्यन्त सुन्दर रचना .
तहदिल आभार आपकी सुन्दर प्रतिकिर्या का……Meenaji….
एक अच्छी धमाल बहुत खूब
तहदिल आभार….Sharmaji….
दर्द सहलाने से नहीं जाता,
मन भी बहल नहीं पाता,
लुट गया जहाँ किसी का,
किसी को प्यार नहीं आता.
बहुत ही सुन्दर……………….
“इल्जाम” आपसे छिपकर निकल गया,
भाग रहा था बचकर पर फिसल गया.
एक बार नजर करें “इल्जाम”.
आपकी शायराना प्रतिकिर्या का जवाब नहीं…..तहदिल आभार आपका……..Vijayji…
बहुत उम्दा सृजन बब्बू जी …………दिल की गहराइयों में उत्तर गए ……..क्या क्या दर्द उठा है ……..सहलाने का मौका जो मिला है अति सुन्दर …..!!
“दिल है कि भूल गया धड़कन पर लेकिन… ” इस पंक्ति में “पर” या “लेकिन” में से एक ही उपयुक्त है दोनों की आवश्यकता नहीं है यदि दिल धड़कना भूल रहा यह अर्थ समझा जाए तो …बाकी आप ……….बेहतर जानते है !!
संशोधन कर दिया हमने आप के कहे अनुसार……तहदिल आभार आपका…. Nivatiyaji….
बहुत ही खूबसूरत…… सुंदर प्रेम भाव……
बहुत ही लाजवाब………
तहदिल आभार आपकी सुन्दर प्रतिकिर्या का……kaajalji….
बेहतरीन ग़ज़ल बब्बू जी. आनँद आ गया पढ़ कर
तहदिल आभार आपकी सुन्दर प्रतिकिर्या का……Madhukarji….
behad khoobsurat rachana… sharma ji….
तहदिल आभार आपकी सुन्दर प्रतिकिर्या का……Madhuji….
बहुत खूब बब्बू जी
तहदिल आभार आपकी सुन्दर प्रतिकिर्या का……Manojji….